१६३] सुधाकर-चन्द्रिका। ३५१ रानियों का (अलग अलग) निवास स्थान है, अर्थात् वह रनिवास है, जिस में अनेक नग-जटित मन्दिर इतर तारागण के ऐसे चमकते हैं । शक कहता है, कि राजा निश्चय समझो, कि) आकाश सरोवर में चन्द्र-कमल, (उस चन्द्र-कमल के पास) तारा-गण कुमुद हैं, और (आज) दूँ (उस गगन सरोवर में ) रवि उदय हुआ है। (सो आज जो तेरे अङ्ग में शीतल सुगन्ध वायु लग रहा है, उसे वायु न समझो, किन्तु तुमारे रवि-रूप के उदय से जो शशि-कमल खिल गया है, इस को प्रसन्नता में ) भ्रमर पवन का रूप धर वास (सुगन्ध) को ले कर (श्राप से) मिला है। क्योंकि रवि-ही के कारण कमल के खिलने पर भ्रमर के सुगन्ध-वाम-ग्रहण मनोरथ को मिद्धि होती है। दूस लिये जिस के अनुग्रह से मनोरथ-सिद्धि हुई उस को भेंट देना उचित है। यह समझ भ्रमर पवन के कपट-वेष से उस वाम को श्राप (रवि) के यहाँ भेंट लाया है। यह कवि का आन्तरिक अभिप्राय है। पद्मावती-पक्ष में, गगन से गन्धर्व-सेन का गढ-सरोवर, उस में शशि पद्मावती कमल, उस के पास को मखियाँ तारा-गण, कुमुद ('तुम्ह ससि होड तरायन साखौ' दोहा ६४, पृष्ठ १० १) लेना चाहिये। और राजा रत्न-सेन ऐसा अपूर्व रवि वहाँ उदय हुआ, कि जिस के कारण उस शशि-(पद्मावती) कमल के साथ कुमुद भी ( सखियाँ तारागण ) जो रवि-दर्शन से सङ्कुचित हो जाते हैं, प्रफुल्लित हो गये ॥ सच्चिदानन्द पर-ब्रह्म-पक्ष में गगन-ही सरोवर, और शशि-हौ, कमल, और उस शशि के पास के तारा-गण कुमुद हैं। राजा सिद्ध होने से पूरा योगी हुआ। पुराणों में कथा है, कि योगी सिद्ध होने पर रवि-मण्डल को बेध कर ब्रह्म में लौन हो जाता है। दूस लिये योगी में रवि से भी अधिक मामर्थ्य होने से राजा रत्न-सेन अपूर्व रवि हुआ, जिस से शशि और तारागण भी दीप्तिमान् हो कर खिल उठे। भारतवर्षीय ज्योतिषियों के मत से शशि और तारागों में रवि-हौ के तेज से तेज है। कमलाकर ने लिखा है, कि- तेजमां गोलकः सूर्या ग्रहाण्यम्बुगोलकाः । प्रभावन्तो हि दृश्यन्ते सूर्यरश्मिप्रदौपिताः ।। (सिद्धान्ततत्त्वविवेक विम्बाधिकार, श्लो० ३ ।) योगी षट्-चक्र को बेध कर जब प्राण को सप्तम-चक्र ब्रह्माण्ड में चढाने लगता है, तब ब्रह्माण्ड, आकाश, और शशि, वाम-खर जो नासिका के बायें पूरे से निकलता है -
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