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३५० पदुमावति । १६ । सिंघल-दीप-भाउ-खंड । [१६३ और यशस्वी है ॥ ते ने योग में (राजा) गोपीचंद को जीता, अर्थात् जीत लिया। ( क्योंकि उस ने माता की आज्ञा से लाचार हो कर योग लिया और तैं ने स्वतः अपनी इच्छा से योग लिया इस लिये हूँ बढ कर है)। और विरक्तता में, अर्थात् वैराग्य में, भर्तृहरि भी तेरी बराबरी में नहीं पूरे हुए, अर्थात् नैं ने वैराग्य में राजा भर्तृहरि को भी जीत लिया (क्योंकि उन्हाँ ने अपनी पत्नी के दुराचार पर ग्लानि कर, वैराग्य धारण किया, और दूं ने अपनी इच्छा से वैराग्य को लिया) ॥ तेरे हाथ में गोरख- नाथ ने सिद्धि (अष्ट-सिद्धि, अष्ट-सिद्धि के लिये ३० ३ दोहे को टौका में ४६ वाँ पृष्ठ देखो) को दिया, अर्थात् घर से चलती बेला जो तँ ने 'सिद्ध होदू कहँ गोरख कहा' (१२८ वाँ दोहा) इस से गोरख को गुरु मान उन का स्मरण किया, सो गुरु ने तेरी तपस्या से प्रसन्न हो तुझे सिद्धि दे कर सिद्ध बनाया। (और गुरु के नाते से तेरे दादा) गुरु (महानुभाव ) मछंदर-नाथ ने (भौ अपना पौत्र समझ तेरी शरीर को) तार दिया, अर्थात् दून महासागरों से पार कर दिया। वा (तुझे अपना पौत्र समझ उन सिद्धियों को) ताली (तुझे) दिया। इस अर्थ में पहले चरण में जो 'दोन्ह' क्रिया पद है उस का सिद्धि, और तारी, दोनों कर्म समझो ॥ तैं ने प्रेम से पृथ्वी (और) श्राकाश (दोनों) को जीत लिया, अर्थात् सिद्ध हो जाने से तेरे लिये यह लोक और पर-लोक दोनों सुलभ हो गये। कैलास ( सदृश) सिंहल तेरी दृष्टि के सामने पडा, अर्थात् नजर आया, वा कैलास (शिव-लोक, यहाँ मच्चिदानन्द पर-ब्रह्म का स्थान ) (और) सिंहल दोनों तेरी दृष्टि में आये, अर्थात् षट्-चक्राकार सागरों के पार हो जाने से और गोरख से सिद्धि मिलने से, इस लोक का वर्ग-स्थान सिंहल और पर-लोक का उत्तम-स्वर्ग कैलास दोनों देख पडे ॥ जो मेघ है, अर्थात् जिसे तुम मेघ समझते हो, वह (वेद) (सिंहल में राजा गन्धर्व-सेन का) गढ़ है, जो कि आकाश में लगा है, अर्थात् अत्यन्त ऊँचा है। (और) कोट (गढ) के चारो ओर ( चहुँ पासा) जो कनौ है, अर्थात् शोभा के लिये उचित उचित स्थानों में जो वज्र की कणी लगाई गई हैं (वे-ही सब) बिजली है, अर्थात् वे-हौ बिजली-सी चमकती हैं। (और) तिम के ऊपर (जिसे तुम) कचपची से भरा ( मुँह) चन्द्र (कहते हो ) मो नगों से जडा सोने का राज-मन्दिर है, अर्थात् वहौ राजा गन्धर्व-सेन का मुख्य रहने का स्थान है, जिस में सुवर्ण-मण्डल चन्द्र और उस में जडे नग कचपची से जान पडते हैं ॥ और उस के चारो ओर ( जिसे तुम ) और नक्षत्र कहते हो, (वह) सब - -