३४२ पदुमावति । १५ । सात-समुदर-खंड । [१६० - १६१ आधी रात के बाद आया ॥ जैसा जिस का जो माज था, अर्थात् जैसा जिस का उत्तम, मध्यम, अधम जहाज था, उसी तरह से वह (आगे पीछे ) उतरा ॥ १६ ॥ चउपाइ। सतएँ समुद मानसर आए। सत जो कीन्ह सहस सिधि पार ॥ देखि मानसर रूप सोहावा। हिअ हुलास पुरइनि होइ छावा ॥ गा अँधिभार रइनि मसि छूटी। भा भिनुसार किरिन रबि फूटौ ॥ असतु असतु साथी सब बोले। अंध जो अहे नयन बिधि खोले ॥ कवल बिगसि तहँ बिहँसी देही। भवर दसन होइ होइ रस लेहो ॥ हसहि हंस अउ करहिं किरौरा। चुनहिँ रतन मुकुताहलि हौरा ॥ जो अस साधि आव तप जोगू। पूजइ आस मान रस भोगू॥ दोहा। भवर जो मनसा मानसर लीन्ह कवल रस आइ। घुन जो हिआउ न कइ सका झूर काठ तस खाइ ॥ १६१ ॥ इति सात-समुदर-खंड ॥१५॥ सतएँ = सप्तम = सातवे । सत = सत्य-सङ्कल्प, वा सत = सत् (पर-ब्रह्म) के लिये सङ्कल्प । सहस = साहम = ढिठाई, वा, सहस = सहस्र = हजार । मिधि = सिद्धि मनोरथ- सिद्धि। सोहावा = शोभित । हिअ = हृदय । इलाम = उल्लास = खुशौ। पुरनि = पर्णिनी = जिस में बहुत पत्ते हाँ = पद्मिनी = कमलिनी। छावा = छावद् (च्याति, छो कर्तने) का भूत-काल में एक-वचन । अधिभार = अन्धकार = अँधियारा। रनि रजनी = रात । मसि = मसौ = स्याही । कूटौ = छुटइ ( छुडति) का स्त्री-लिङ्ग में भूत- काल का एक-वचन। भा= अभूत् = भया = हुा । भिनुसार = अभीनासार विहान = व्यहाऽऽसार = प्रातःकाल = सबेरा = सुवेला। किरिन = किरण । रबि रवि = सूर्य। फूटौ = फूटद् (स्फुति ) का स्त्री-लिङ्ग में भूत-काल का एक-वचन । असतु एवमस्तु = ऐसा हो। साथी = सार्थों = सङ्गी। सब = सर्व। बोले = बोल (वलाति वा वदति) का पुं-लिङ्ग में भूत-काल का बहु-वचन । अंध - अंधा। अहे = थे = अन्ध-
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