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३४० पदुमावति । १५ । सात-समुदर-खंड । [ १५६ - १६० को राजा के पीछे चलाया। (समुद्र के लहर में जहाजों के पडते-हौ) कोई किसी को संभारता नहीं है, अर्थात् कोई किसी को खबर नहीं लेता है, कि वह आगे है, वा पोछे है, वा समुद्र में डूब गया दूम की खोज कोई नहीं करता है। (सब को) अपनी अपनी हो रही है, अर्थात् सब किसी को अपनी अपनी पडी है। किसी को किसी को खोज खबर नहौँ ॥१५८ ॥ चउपाई। कोइ बोहित जस पवन उडाहौं। कोई चमकि बौजु बर जाहौँ॥ कोई जस भल धाव तुखारू। कोई जइस बइल गरिबारू॥ कोई हरुन जानु रथ हाँका। कोई गरुअ भार होइ थाका ॥ कोई रंगहि जानउँ कोई टूटि होहिँ सरि माटौ ॥ कोई खाहिँ पवन कर झोला। कोई करहिं पात बर डोला ॥ कोई परहिँ भवर जल माँहा। फिरत रहहिं कोइ देव न बाँहा॥ राजा कर भा अगुमन खेवा। खेवक आगइ सुश्रा परेवा ॥ चाँटी। दोहा। कोइ दिन मिला सबेरई कोइ अावा पछ-राति । जा कर जो हुत साजु जस सो उतरा तेहि भाँति ॥ १६ ॥ बोहित = जहाज । जम = यथा = जैसे । पवन = वायु = हवा । उडाही = उडहिँ-उडद (उड्डीयते ) का बहु-वचन । चमकि चम् चम् कर । वौजु = विद्युत् = बिजुली । बर = वर = श्रेष्ठ । जाही = जाहि= जादू (याति) का बहु-वचन । भल = वर श्रेष्ठ । धाव = धावडू (धावति) धावता है = दौडता है। तुखारू = तुखार = जैमा बद्दल = बलौवः = बैल । गरिबारू = गरिबार गालय = निन्दित कर्मों से भरा, जो चले नहीं, चलाने के समय बैठ बैठ जाय । हरु = लघु (प्राकृत लहुश्रो वा हलुअो) = हलका। जानु = जानौँ = जनु । हाँका = हाँकदू (हाँ करोति) का भूत-काल । गरुत्र = = गुरु भार=गढ़। भार = बोझा । थाका = थकद (स्थगति ) का भूत-काल में एक-वचन । रेंगहि =रेंगदू (रिङ्गति) का बह-वचन । चाँटौ घोडा। जदूम = = यथा।