१५५] सुधाकर-चन्द्रिका। ३२० बाढा - जग धार
बाढ। अगम
= कराहा। = मलयाचख लङ्का = रावण की राज-धानी। जरी = जरदू का स्त्री-लिङ्ग में भूत-काल का एक- वचन । बुंदा = बिन्दु = बूंद। बिरह = विरह = वियोग। उपना = उत्पन्न हुआ। काढा = काढदू (कर्षति) का भूत-काल । खन = क्षण । बुझाइ = बुझदू = बुतद् (बुदति)। बढदू (बर्धते ) का भूत-काल में एक-वचन । डौठी -दृष्टि पडतो = देख पडतो। सउँह = मम्मुख = सामने । फिरि = फिर कर। दे = (दत्ते ) देता है। पौठी = पृष्ठ = पौठ। जगत् = संमार । खरग = खड्ग = तलवार । धारा = वार अगम्य = दुर्गम = जाने योग्य नहौं । जउ = यदि। अदूम = एतादृश = ऐसा। साधि = श्रद्धा = इच्छा। पाव= (प्राप्नोति ) पाता है। परा = परदू (पतति) का भूत-काल में एक-वचन । चहद = ( चदति, चहति, वा इच्छति) चाहता है। पद = अपि = परन्तु । रोव रोम =रोत्रौँ । जरा जर का पुंलिङ्ग में भूत-काल का एक-वचन ॥ तलफदू = तल में फद फद करता है = चुरता है। तेल = तैल। कराह = कटाह = जिमि = यथा = यवत् = जैसे । इमि = दूव = तहत् = तैसे। मलय-गिरि जहाँ शीतल करने-वाला मलय चन्दन उत्पन्न होता है, जिस के हवा से सब सुगन्धित और शीतल हो जाते हैं। बेधा = बेध (विध्यते ) का भूत-काल में एक-वचन ॥ (लोग) उदधि, अर्थात् जल के समुद्र में आये, (जो कि पार किया हुआ) समुद्र से भी अपार है, अर्थात् दधि-समुद्र से भी बडा भयङ्कर और अपार है। पुराणों के मत से दूसी समुद्र में बडवाग्नि है। भारत के ज्यौतिषौ-लोग भी मौ बडवाग्नि मानते हैं, और कहते हैं, कि दूमी आग से जल खौल जाने पर, वाष्प रूप हो कर, वायु-वेग से श्राकाश पर चढ जाता है; फिर वही मेघ हो कर, समयान्तर में पानी बरसता है। बडे प्राचीन भारत के ज्यौतिषौ श्री-पति ने चिखा है, कि- सुजल-जलधिमध्ये बाडवोऽग्निः स्थितोऽस्मात् सलिलभरनिमग्नादुत्थिता धूममालाः । वियति पवननौताः सर्वतस्ता द्रवन्ति धुमणिकिरणतप्ता विद्युतस्तत्स्फुलिङ्गाः ॥ (गणकतरङ्गिणो देखो)। भास्कराचार्य ने भी अपने गोलाध्याय के भुवनकोश में लिखा है, कि 'खादूदका- न्तर्बडवानलोऽसौ', अर्थात् सुजल-समुद्र में बडवानल है। दूमौ लिये कवि कहता है, कि तिम समुद्र के झार से, अर्थात् तिम समुद्रान्तर्गत बडवानल के तेज से पृथ्वी और ७ समुद्र में