३२२ पदुमावति । १५ । सात-समुदर-खंड । [१५३ रम्भा = ( कवि कहता है, कि) चौर-समुद्र का क्या वर्णन करूं, अर्थात् उस की शोभा वर्णन से वाहर है। श्वेत ( (तो उस का) रूप है, (और जल का) पौने में (ऐसा स्वादु जान पडता है ) जैसे दूध का ॥ पुराणों के मत से दूसो चौर-सागर में भगवान् विष्णु लक्ष्मी के साथ शेष-नाग के ऊपर मोते हैं, और दूमौ समुद्र में से चौदहो रत्न मथन करने पर निकले हैं, जिन के ये नाम हैं, कत्त्पद्रुम कल्पवृक्ष १। वारुणौ = मदिरा २। वारण = ऐरावत हस्तौ ३ । धेनु = काम-धेनु = गाय ४ । धन्वन्तरि = वैद्य ५। धनु = शार्ङ्गधनु ६ । शङ्ख = पाञ्चजन्य शङ्ख ७। चन्द्रमा ८ । कमला ( लक्ष्मी) ८ । मणि = कौस्तुभ मणि १० । अप्सरा ११ । अमृत १२ । विष १३ । वाजी = (उच्चैःश्रवा घोडा) १४ । इस को रामसहाय कवि ने रत्नाकर नाम की सवैया छन्द में लिखा है- 'कलपद्रुम बारुनि बारन धेनु धनन्तरि श्री धनु संख निसाकर । कमला मनि रंभ सुधा बिष बाजि सबै प्रगटे एक एक गुनाकर ॥ दून चौदह को सुख मानि लिये हरि संभु सुरासुर इंद्र दिवाकर । हित ये न सहाय भये तब-हौं जब-हौं घट-जोनि पिये रतनाकर ॥ दमी पर कवि कहता है, कि दूस समुद्र में लहर के उठने पर- माणिक्य, मोती होरा (इत्यादि रत्न) उलटते हैं, अर्थात् इधर से उधर उलटते पुलटते हैं, (जिन) द्रव्यों को देख कर (लोभ से ) मन स्थिर नहीं होता है, अर्थात् उन के लेने के लिये मन चञ्चल हो जाता है ॥ ( कवि कहता है, कि यह ) मनुष्य वा मन द्रव्य और भोग को चाहता है; (जो द्रव्य, कि) राह (योग को राह) को भुलवा कर, योग का विनाश कर देता है, अर्थात् यह मन जहाँ द्रव्य और भोग- विजाम में फंसा, तहाँ योग की राह भूलौ और योग नष्ट हुआ ॥ (दूस लिये) योगी मन से उसी रिष्ट को, अर्थात् उसौ अनिष्ट-कारक द्रव्य को, मारता है, अर्थात् मन से उस की वासना हटा देता है। द्रव्य हाथ में कर के, अर्थात् अनायास हाथ में ट्रव्य श्रा जाने पर भी, (उस द्रव्य को) समुद्र में फेंक देता है॥ द्रव्य को जो लेता है, वह (मो) राजा चञ्चल है, अर्थात् द्रव्य को लेने से राजा भौ लोभी कहलाता है ( और ) जो योगी है, तिम के लिये (द्रव्य ) किस काम का, अर्थात् योगी लिये द्रव्य किमी काम का नहौं ॥ पथ में पथिक के लिये द्रव्य शत्रु है। दूमौ (मोई ) के कारण संग में ठग, बटपार और चोर लगते हैं ॥ वे-हौ (मो) पथिक (सच्चे हैं) 9 -
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