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१५३] सुधाकर-चन्द्रिका। ३२१ मनुश्रा चाह दरब अउ भोगू। पंथ भुलाइ बिनासइ जोगू ॥ जोगी मनहिँ उह-इ रिस मारइ। दरब हाथ कइ समुद पबारइ ॥ सो असथिर राजा। जो जोगौ तेहि के केहि काजा॥ पंथिहि पंथ दरब रिपु होई । ठग बटपार चोर सँग सोई॥ पंथी सो जो दरब सउँ रूसे। दरब समेटि बहुत अस मूसे ॥ दरब लेड दोहा। खौर-समुद सब नाँघा आप समुद दधि माँह । जो हहिं नेह क बाउर ना तेहि धूप न छाँह ॥ १५३ ॥

मनवा

पन्या:- - खौर-ममुद = चौर-समुद्र दूध का समुद्र । बरनउँ = वरन (वर्णयति ) का लोट में उत्तम-पुरुष का एक-वचन। नौरू = नौर = जल। सेत = श्वेत = सफेद । मरूप = स्वरूप = रूप = सूरत । पौत्रत = पिबन् मन् = पौने में । जस = यथा = जैसे। खीरू = खौर चौर = दूध। उलथहि = उलथद् ( उल्लुट्यति ) का बहु-वचन । मानिक = माणिक्य लाल रत्न । मोती = मुक्ता = मौक्तिक । होरा= हौर = हौरक । दरब = द्रव्य = धन । देखि = देख कर = देखद् ( दृश्यते ) से ल्यप् । थोर स्थिर = अचल । मनुत्रा = मानव = मनुष्य, वा मनुत्रा मन। चाह = चाहद् (चहति)। भोग = भोग । पंथ राह। भुलादू = विलोप्य = भुलवा कर। बिनासद् = (विनाशयति) विनाश करता है, वा करती है। जोग = योग -फकीरी। जोगी = योगी। उह-द् = वही। रिम =रिष्ट = अरिष्ट = अनिष्ट । मार = (मारयति) मारता है। पवार = (प्रवारयति) पबारता है = फेंकता है। अमथिर = अस्थिर = चञ्चल। काजा कार्य = काम। पंथिहि- पथिक को। पंथ = पथ में = राह में। रिपु = शत्रु = दुश्मन । ठग = स्थगः = चाराने-वाला। बटपार = वाट-पाल =राह-रक्षा करने-वाले कोल भिल्ल। सँग == संग: मङ्ग = साथ। पंथी पान्थ = पथिक। सउँ = माँ = से। रूसे = रूस (रुष्यति ) का भूत- काल में बहु-वचन । समेटि = समेत्य = एकट्ठाँ कर के = बटोर कर। मूसे = मूसे गये = ठगे गये मुष्ट हुए ॥ नाँघा= नाँघद् (लङ्घते ) का भूत-काल में एक-वचन। इहि = (अस्ति) का बहु-वचन। नेह = स्नेह = प्रेम = प्रौति। क = का, वा, के। बाउर- वातुल = बौरहे। ना = न, वा ना = नर । धूप = तेज = घाम । छाँह = छाया ॥ 41 छल से