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१५०] सुधाकर-चन्द्रिका। ३१३ मच्छ= मत्स्य। -भक्षण गरजदू जउ जानु = जान = (जानाति), वा जानु = जानुं = जानौँ । कुत्रा = कूप = कूत्रा । में जा मज्जा = अपवित्र जल, मज्जा के सदृश । तउ = तो। चाल्ह = चालः = चेल्हवा । लागद = (लगति) लगता है। कोह = वह = कुछ भी। कहिहह = कहोगे = कहदू (कथयति) का भविष्य-काल में बहु-वचन। देखिहहु = देखोगे = देखद् (दृश्यते ) का भविष्य- काल में बहु-वचन । रोह = रोहितः = एक प्रकार का मत्स्य । तद् = तक। असे = एतादृश = ऐसे। सहस = सहस्रों = हजारौं। समाहौँ = समाहि= समाद (समाप्यते) का बहु-वचन । राज-पंखि = राज-पची = बडे बडे पक्षी। पर = उपरि = ऊपर । मडराही - मेडराहिँ = मडरादू (मण्डलयति) का बहु-वचन। कोस = क्रोश। परिछाहौँ परिच्छाया = परछाहौँ । जेद् = ये = जो लोग। वैदू = तान् = उन । ठोर = स्थौरम् = चाँच । गहि = संग्टह्य = ग्टहीत्वा = गह कर = पकड कर । सावक-मुख बच्चे के मुह में । चारा = चार = (गर्जति) गर्जता है। पंखि पचौ। यदा= जब । बोलहि = बोल (वलाति वा वदति) का बहु-वचन । डोलहिँ = डोल (दोलति) का वड-वचन । डयन = -डयनम् = डैना। चाँद = चन्द्र । सुरुज = सूर्य। असूझा = असूह्य = असूझ = न देखने योग्य, वा अशुद्ध। चढदू = (चलति ) चढता है। अस - एतादृश = ऐसा । अगुमन = श्रागमने = आगे-हो बूझदू (= बुझ्यते) का भूत-काल मैं एक-वचन ॥ दस = दश। जादू = (याति) जाता है। कोई = कोऽपि = कोई। करम = कर्म । धरम = धर्म। सत = सत्य । नेम = नियम । होइहि = होगा। तउ= तब = तदा। कूसल = कुशल । खेम = क्षेम = कल्याण ॥ (चाल्ह को देख कर जो राज-कुरों ने बतकही को) उस (मो) बतकही को सुनते-हौ केवट हसे, (और कहने लगे, कि आप लोग) समुद्र को कुत्रों का मज्जा जानते हैं न, अर्थात् जैसे कू के थोडे घेरे में थोडा सा मैला पानी छोटे छोटे जल-जन्तुओं से संयुत रहता है; उसी प्रकार श्राप लोगों ने समुद्र को समझ लिया क्या ? ॥ (सो) यह चाल्ह तो कुछ भी नहीं (दृष्टि में ) लगता है, अर्थात् यह तो समुद्र के मत्स्यों में कुछ भी भारी नहीं है। (श्राप लोग जो दूमी को बहुत भारी मान लिया, तो) जब (समुद्र का) रोइ देखोगे तब क्या कहोगे, अर्थात् चाल्ह-दर्शन- हो में जब बुद्धि चकरा गयौ, तब नहीं कह सकते, कि रोइ के देखने पर क्या गति होगी ॥ अभी तक आप लोगों ने (रोह को) नहीं देखा, जिस के (रोह के ) मुख में ऐसे (चाल्ह) हजारों समा जाते हैं, अर्थात् 'तिमिंगिल-गिलोऽप्यस्ति पहले-ही। बूझ= 40