पदुमावति । १३ । राजा-गजपति-संबाद-खंड । [१४७ इन्धन मिलेगा। इस पर कर्ण ने क्रुद्ध हो कर, भण्डारी को डाँटा, कि मूर्ख, पहर भर में तो संभव है, कि ब्राह्मणौ शौत के कारण व्याकुल हो, सो मेरी चारपार्यों को चौर कर, श्राज के लिये ब्राह्मण को यथेच्छ इन्धन दे। इस पर भण्डारी ने कर्ण के कई चारपायों के पाटी गोडे चिरवा कर, ब्राह्मण को इन्धन दिया। इस पर कृष्ण ने युधिष्ठिर को देखा कर कहा, कि क्या आप के पास चारपाइयाँ न थी, जिन से ब्राह्मण को श्राप इन्धन दे सकते ? सो देखो कर्ण की उदारता। इसी लिये मैं ने तुमारे लोगों में सब से अधिक उदार कर्ण को कहा है। इस बात को सुन, युधिष्ठिर ने लज्जित हो, नौचे शिर कर लिया। व्यास की दूसरी कहानी ऐसौ है-। बडे भोर कर्ण की सत्यता और दान- शौलता देखने के लिये एक वेर योगी बन कर, महादेव जी आये। जैसे-हौ योगी द्वार पर पहुँचा, तैसे-हौ अन्तःपुर से बाहर कर्ण उठा हुआ चला आता था। योगी से चार आँख होते-हौ, प्रणाम करने के अनन्तर, बडे भोर योगी के आने का कारण पूँछा । योगी ने कहा, कि श्राप से कुछ मांगने आया है, यदि श्राप तीन वेर वचन दें तो मै माँगू। कर्ण ने कहा, कि योगि-राज, आप माँगिये मैं निःसंशय दूंगा, दूंगा, दूंगा। इस प्रकार तीन वेर बाचा बंधा कर योगी ने कहा, कि तुमारे पुत्र विकर्ण को मांस खाने चाहता हूँ। उस में नियम यह, कि आप अपनी पत्नी के सामने उस का शिर काटिये, और आप को पत्नी उस कटे शरीर की बोटी बोटौ चौर कर, पानी से अच्छी तरह धो कर, बटलो-हो में धर कर, पकावे। पकने पर वही थारी में परोसे, और आप मुझे जवाँ, और आप को वहौ पत्नौ, जब तक मैं भोजन न कर लूं, बैठी बनिया डोलावे। परन्तु इतना ध्यान रक्खो, कि इस कृत्य के श्रादि से अन्त तक तुमारे और तुमारी पत्नी के आँखों से आँसू के एक बूंद न निकले। यदि किसी के आँख से एक बूंद भी टपकेगा तो मैं भोजन न करूंगा और शाप से तुमारी सब श्री भस्म कर डालूंगा। इस पर धैर्य धर, कर्ण घर के भीतर पत्नी के पास गया; और कदाचित् पुत्र के शिर काटने में यह विघ्न करे, और यथोचित योगी के नियम का न पालन करे, इस भय से, अनेक मनोहर मधुर वचनों से पत्नी की सेवा में लग गया। पति-व्रता पत्नी भी बडे श्रादर से पति के पैरों पर गिर कर, विनय करने लगी, कि नाथ, ऐसा कौन सा कार्य-भार ा पड़ा, जिम के लिये इस दासी को इतनी सेवा में आप के सब अङ्ग नाना प्रकार को भङ्गी में लगे
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