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१४७] सुधाकर-चन्द्रिका। ३०१ = उज्चल श्राव = फायदा । उजिारा= उग्चलकार = उग्चल । अंधिधारा = अन्धकार। मंदिर मन्दिर = घर । निसि = निशि = रात्रौ =रात में। अँजोरा उजेला प्रकाश । मूसहि = मूसद (मुष्णाति ) का बहु-वचन । चोरा = चोर । हातिम = मुसल्मानों में एक प्रसिद्ध दानी। करन = कर्ण = भारत का प्रसिद्ध धौर, वीर, और दानी। सौखा = शिक्षा पाया, वा सौखा शिखा = चोटी। धरमिन्ह = धर्मिणः = धर्मि-जन । लोखा = लेखा = गणना। काज = कार्य = काम। दुहूँ = द्वौ हि = दोनौँ। श्रावा = श्राव (श्रायाति)। इहाँ = इह = यहाँ । निरमर =निर्मल = उज्ज्वल =खच्छ = साफ । पंथ = पन्थाः = मार्ग= राह । जाइहि = जायगा = जादू (याति) का भविष्यत्-काल में एक-वचन । पद = अपि= निश्चय से = अवश्य, वा पडू = पर । माथ = सार्थ = सङ्ग ॥ ((मलिक महम्मद कहते हैं, कि) तिस (पुरुष) का धन्य जीवन और हृदय है, जिस का, कि दान, वा दीया (प्रताप ) जगत् में सब से ऊँचा, अर्थात् बढ कर है वह (सो) दिया अर्थात् दान, वा दीया (प्रताप), सब जप (और) तप के ऊपर है। दान (दिया) वा दीया (प्रताप) के बराबर जगत् में कुछ नहीं है, अर्थात् संसार में ऐसी कोई वस्तु नहीं जो दान वा प्रताप की बराबरी करे। भारत, शान्तिपर्व, सर्ग २६ को कथा में व्यास लोग ऊपरी कथा कहते हैं, कि राजा रन्तिदेव कई दिन उपवास करने पर, खेत में झडे हुए जवाँ को चुन लाये और उन से जो सत्तू तयार हुआ, उस का ब्राह्मणा, अपने, पत्नी, पुत्र, और पुत्र की पत्नी के हेतु पाँच विभाग कर, पत्तलों में परोम, ब्राह्मण का भाग अलग निकाल, जैसे-हो जैवने के लिये बैठे, तैसे-हो राजा के धर्म को ध्वंस करने के लिये विश्वामित्र पहुंचे, और कहा, कि 'राजन बुभुक्षितोऽस्मि' दूस पर राजा ने ब्राह्मण का अलग रक्खा हुआ भाग उन के आगे बडे श्रादर से रख दिया। उस के खा जाने पर मुनि ने कहा, कि 'राजन् नैतावता भोजनेन हप्तिर्जाता'। तब राजा ने क्रम क्रम से अपना, अपनी पत्नी का, तथा पुत्र का और पुत्र बधू का, सब भाग विश्वामित्र को खिला कर, उन्हें श्रादर-पूर्वक विदा किया। और इधर क्षुधा-वेदना से चारो के प्राण स्वर्ग-प्रयाण के लिये उठ खड़े हुए। इस कठिन दान को देख कर, देवाँ ने धन्य धन्य कह, दुन्दुभी बजाई, और चारो को विमान में बैठा, मङ्गल-स्तुति करते स्वर्ग को ले गये। यहाँ विश्वामित्र के पत्तल पर जो उच्छिष्ट सत्तू पडा था, उस के खाने के लिये एक नेउरा भाया । पत्तल चाटने के समय उस के नाभी से ऊपर शरीरार्द्ध-भाग में जो उच्छिष्ट लगे, उस के कारण उस की आधी देह