पदुमावति । १३ । राजा-गजपति-संबाद-खंड। [१४१ - १४२ 1 - HT पपौहे को लोग पालते हैं, और वह सब नक्षत्रों का जल पीता है। मैं नहीं कह सकता, कि कैसे यह कहावत भारतवर्ष में प्रसिद्ध हुई । कदाचित् पालने से पपोहे की प्रकृति बदल जाती हो । यह भी प्रसिद्ध कहावत है, कि समुद्र में जो सौपी, एक जन्तु-विशेष, रहता है, वह समुद्र में रह कर भी केवल स्वाती-हौ का पानी पौता है, और उस पानी-ही से उस के पेट में मोती का जन्म होता है। किमी मुसल्मानी कवि ने इसौ कहावत पर समुद्रान्योक्ति कहा है, ऐ समंदर देख लो हम ने तेरौ दरया दिली। तिस्ने लब रक्खा सदफ् को बूंद पानी को न दो ॥ islo bi ju boju lised saatio jawe sal siyasain tes Jaiai ॥ १४१ ॥ चउपाई। मासक लाग चलत तेहि बाटा। उतरे जाइ समुद के घाटा ॥ रतन-सेन जोगी जती। सुनि भेंटइ अावा गज-पतौ ॥ जोगी आपु कटक सब चेला। कवन दीप कहँ चाहहिं खेला ॥ भलेहि आप अब माया कौजिअ। पहुनाई कहँ आसु दौजि ॥ सुनहु गज- न-पती उतरु हमारा। हम तुम्ह एक-इ भाउ निनारा ॥ नेवतहु तेहि जेहि महँ यह भाज। जो निरभउ तेहि लाउ नसाऊ ॥ इह-इ बहुत जउ बोहित पावउँ। तुम्ह तइँ सिंघल-दीप सिधावउँ ॥ दोहा । जहाँ मोहिँ निजु जाना कटक होउ लेइ पार। जउ रेजिअउँ तब लेइ फिरउँ मरउँ त ओहि के बार ॥१४२॥ मामेक= मासैक = एक महीना। लाग = लगा। उतरे= उतरद् ( उत्तरति) के भूत-काल घाट । जोगी = योगी। जती = यतौ। भेंट = भैंटने । श्रावा= आयात् = अाया। गज-पतौ = गज-पति = कलिङ्ग देश का राजा, जो आज कल विजयनगर का राजा मद्रास हाते में है, इस राजा के यहाँ दश हजार हाथी रहते थे; इसौ हाथियों को अधिकता से इसे लोग गज-पति कहते थे। आज कल जो ईजानगर के राजा है उन के नाम के संग भी 'गज-पति' यह उपाधि लगी हुई है। का बहु-वचन। घाटा = घट्ट
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