१४०] सुधाकर-चन्द्रिका । २८१ - 1 - एक प्राचीन नगर नर्मदा के तट पर संप्रति जबलपुर के दक्षिण की ओर तीन मौल पर था। दूस का उत्तर अक्षांश २३ । ।। पूर्व देशान्तर ८०। १६ । जबलपुर का अक्षांश २३ । ११ । पू० दे० ८० । १६'। जो कि बहुत काल तक समग्र गोंडवाने का प्रधान राजस्थान था। कटंगौ - एक टूटा-फूटा नगर भाँउर पहाडी के निकट हिरण्य-नदी के उत्तर तट पर जबलपुर से २२ मौल वायुकोण पर सागर को सडक पर है। अक्षांश २३ । २६ । ३० । दे० ७८° । ५० पूर्व दूस का है। यहाँ पहले बन्दूक अच्छी बनती थी। गढ-कटंग वा गढ अकबर के समय सूबे मालवा के बारह सर्कारों में से एक सर्कार था। यह आज कल जबलपुर रेल के सेशन के निकट पड जाने से सब भ्रष्ट हो गया। केवल एक मदन-महल नामक स्थान बच गया है। रतन-पुर Ta-gt- (See Hamilton's Description of Hindustan, Vol. II., p. 22; and also Cunningham's Archæological Survey of India, Vol. VII., pp. 214-216). जो कि आज कल बिलास-पुर के जिले में है। उस समय भी दूसो नाम से प्रसिद्ध था। इस का उ. अ० २२° । २१ और पू० दे० ८२ । २५ ॥ E-ga (Chhindwara). (See Thornton's Gazetteer, p. 903 and p. 203, ed. of 1857; and also the Atlas of the Society for the Diffusion of Useful Knowledge, Vol. I., Map of India No. 6). 'छिन्द्वारा', जो कि मध्य-प्रदेश में आज कल एक जिला है, पहले यही सिँदवारा के नाम से प्रसिद्ध था। इस का उ० अ० २३ । ३ । ३० दे० ७८°। ५६ पू० । झारखंड - छत्तीसगढ और गोंडवाने के उत्तर-भाग को मुसल्मानों ने अपने इतिहास-ग्रन्थों में झारखंड नाम से लिखा है। इस में उत्तरीय गाँडवाने का बहुत भाग पहाडी-भाग है जो कि सर्कार चुनार और सूबे बिहार तक चला गया है । (See Hamilton's Description of Hindustan, Vol. II., p. 6; and Aîn-i-Akbari, Vol. I., Index). उडौमा – यह आज तक दूसी नाम से प्रसिद्ध है। गज-पति- कलिङ्ग देशाधिपति, महेन्द्राधिपति (राजमहेन्द्रौ) उत्तरीय-सर्कार के प्राचीन राजाओं को पदवी है, जो कि समुद्र के अधिपति कहलाते थे। (रघुवंश, ७ स० । श्लो० ५४ )। और जिस का बडा बन्दर कोरिङ्गा नदी के किनारे पर (जो कि महानदी को एक शाखा है) है। यह बन्दर प्राचीन समय से प्रसिद्ध है। कोरिङ्गा का उ० अ० १६ । ४० ॥ दे० ८२° । ४४ पू० । राजमहेन्द्री का उ• अ० १६ । ५८ ॥ 11 - 36
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