११०] सुधाकर-चन्द्रिका। २०७ - (संस्कृत)। कोल = एक जङ्गली मनुष्यजाति = भौलों का एक भेद, जो मध्य-प्रदेश नाग-पुर- इत्यादि में विशेष कर पाये जाते हैं । तजु = तजद ( त्यजति ) का लोट् लकार म मध्यम-पुरुष का एक-वचन । बाएँ = वामे = बाई ओर। अधिभार खटोला = अन्धक- टोला = अन्धकों का स्थान । यदुवंशियों के प्रभेद में एक जाति। पाणिनि ने अपने व्याकरण में लिखा है, 'य्यन्धकवृष्णिकुरुभ्यश्च' अष्टाध्यायौ (१०४ पा० १ सू० ११४) काव्यप्रकाश में लिखा है, कि येन ध्वस्तमनोभवेन बलिजित् कायः पुरा स्वीकृतो यश्चोहत्तभुजङ्गहारवलयो गङ्गां च योऽधारयत् । यस्याहु: शशिमच्छिरो हर इति स्तुत्यं च नामामराः पायात् म स्वयमन्धकक्षयकरस्वां सर्वदो माधवः ॥' (सप्तम उल्लास) यह श्लोक शिवपक्ष और विष्णुपक्ष दोनों में है। शिवपक्ष में अन्धक = राक्षस, और विष्णुपक्ष में अन्धक = यदुवंशियों का प्रभेद । यह अन्धक-नगरौ समुद्र के तट पर बसौ है, जब कि भगवान् कृष्ण मथुरा को छोड कर, द्वारिका को चले गये दकिवन = दक्षिण । दहनदू = दक्षिणे = दहनौ ओर । तिलंगा = तैलङ्ग देश के रहने वाले - पञ्चद्राविड में एक जाति । करहकटंगा= कर्णाटक । रतन-पुर = रत्नपुर = रत्नगिरि। सौह-दुबारा = सिंह-दार = जगन्नाथ जी के यहाँ जाने के लिये प्रधान द्वार, जहाँ से हो कर, लोग जगन्नाथ पुरी में प्रवेश करते हैं। झारखंड = झारखण्ड = एक पहाड, जो वैद्यनाथ महादेव के पास से होता हुआ जगन्नाथ-पुरौ के प्रान्त तक चला गया -उन-देश = उत्कल-देश = जहाँ उत्कल-जातीय ब्राह्मण होते हैं। दहिनाबरत = दक्षिणावर्त्त = दहिना फेरा = प्रदक्षिणा । उतरु = उत्तरद (उत्तरति) का लोट् लकार में मध्यम-पुरुष का एक-वचन। समुद समुद्र। घाट= घट्टः = जहाँ, कि उतार का सुभीता हो= उतरने योग्य समुद्र का तट ॥ (लोगों को, विशेष कर, राजा को राह न जानने से घबडाहट में देख कर ) उसौ बेला में श्रेष्ठ शुक (हौरा-मणि) बोला, (कि घबडावो मत ) श्रागे वही है, जो कि राह को देखे हुए है, अर्थात् मैं राह का देखने-वाला आगे हैं घबडाने की कोई बात नहौं ॥ जिस के तनु में पक्ष नहीं है वह (मो) क्या उडे, अर्थात् वह नहीं उड सकता। वह (मो) (तो) पत्ते को ले कर, शाखा को डुबा देता है, अर्थात् वह पत्ते- %3D उडमा (
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