१३] सुधाकर-चन्द्रिका। २०१ चउपाई। भएउ पयान चला पुनि राजा। सिंगि-नाद जोगिन्ह कर बाजा ॥ कहहि आजु किछु थोर पयाना। काल्हि पयान दूरि हइ जाना ॥ ओहि मेलान जउ पहुँचद कोई तब हम कहब पुरुख भल सोई ॥ हहिं आगइ परबत कइ पाटी। बिखम पहार अगम सुठि घाटौ ॥ बिच बिच नदी खोह अउ नारा। ठाउँहि ठाउँ उठहिँ बट पारा ॥ हनुवंत केर सुनब पुनि हाँका। दहुँ को पार होइ को थाका ॥ अस मन जानि सँभारहु अागू। अगुआ केर होहु पछ-लागू ॥ - दोहा। पयान= कम। पयाना करहिं पयान भोर उठि पंथ कोस दस जाहि। पंथी पंथा जे चलहिँ ते का रहहि ओनाहिँ ॥ १३८॥ प्रयाण = यात्रा । सिंगि-नाद = टङ्गौ-नाद = श्रङ्गी बाजे का शब्द । बाजा = बजद् (वाद्यते) का भूत-काल । किछु = किञ्चित् । थोर = थोड = थोडा पयान । काल्हि = कल्यम् = बौता हुआ दिन, परन्तु अब भाषा में बीता और श्रागामि दोनों दिनों के लिये व्यवहार किया जाता है = कल । दूरि = दूर। जाना = यानम् = गमनम्। मलान = मेलन = मिलान = मेल में बराबर। जउ = यदि = जौँ । कहब = कहेंगे। पुरुख = पुरुष = आदमौ। भल = भर = भला = भव्य । सोई = स एव = वही। हहिँ = हदू का बहु-वचन = अहहिं । श्रागदू = अग्रे= अागे। परबत= पाटी= पट्टिका = पटिया = शिला। वा पाटौ = परम्परा = = एक के वाद दूसरा। बिखम = विषम = कठिन = नीचे ऊँचे । पहार = प्रहार पर्वत। अगम= अगम्य =जाने योग्य नहौं । सुठि = सुष्टु = अच्छी तरह से अत्यन्त । घाटौ = घट्टी = सङ्कुचित राह । बिच बिच बीच बीच। खोह खन्धक = कन्दरा। नारा=नच = मार। ठाउँठाव = स्थान । उठहिं = उठ (उत्तिष्ठते) का बह-वचन । बटपारा= वाट-पाल =राह के मालिक डाँकू। हनुवंत = हनुमन्तः == हनुमान्। सुनब = सुनियेगा। हाँक = हुङ्कार = गर्जना। दई = देखें = क्या जानें। थाका= स्थगित होता है = थकद (स्थगति) का भूत-काल। श्रगुत्रा अग्रग वा अग्रुक (प्राकृत में उकः खार्थ) = भागे जाने-वाता। पछ-लागू = पचाल्लग्न - पर्वत । 1
पृष्ठ:पदुमावति.djvu/३७७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।