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१३५ - १३६] सुधाकर-चन्द्रिका। २६३ चित्तौर गढ में ) दुःख का नाँच हो गया, अर्थात् सर्वत्र ऐमा राजा के वियोग से शोक छा गया, जानौँ दुःख नट का वेष कर, चारो ओर नाँच रहा है। जहाँ देखो तहाँ हाय हाय मच रही है ॥ १३५ ॥ 1 चउपाई। निकसा राजा सिंगी पूरी। छाडि नगर मेला होइ दूरी ॥ रा रंक सब भए बिनोगी। सोरह सहस कुर भए जोगौ ॥ माया मो हरी सइँ हाथा। देखेन्दि बूझि निभान न साथा ॥ छाडेन्हि लोग कुटुंब सब कोज । भा निनार दुख सुख तजि दोज ॥ सवरइ राजा सोई अकेला। जेहि रे पंथ खेलइ होइ चेला ॥ नगर नगर अउ गाउँहि गावाँ । चला छाडि सब ठाउँहि ठावाँ ॥ का कर घर का कर मढ-माया। ता कर सब जा कर जिउ काया॥ दोहा। चला कटक जोगिन्ह कर । कई गेरुआ सब भेसु। कोस बीस चारि-हुँ दिसि । जानउँ फूला टैंसु ॥ १३६ ॥ निकसा = निकम (निष्कमति, कस गतौ वादि) का भूत-काल। सिंगो = श्रङ्गी = हरिण के सौंग का बाजा। पूरी = पूरद (पूरयति) का स्त्री-लिङ्ग में भूत-काल । मेला मिला = मिलदू (मिलति) का भूत-काल । हो = भूत्वा = हो कर। दूरौ= दूर । राप्र= राय = राजा, अर्थात् छोटे राजा। रंक = रङ्ग = दरिद्र। बिनोगी = वियोगी। मोरह = षोडश । हजार । कुवर = कुमार राज-कुमार। जोगी योगी। हरौ = हरदू (हरति) का स्त्री-लिङ्ग में भूत-काल । देखन्हि = देखदू (बौद्धाँ के संस्कृत में द्रक्ष्यति - पश्यति ) का भूत-काल में बहु-वचन । बूझि = बुद्ध्वा = बूझ कर = समझ कर । निशान = निदान = अन्त में । माथा सार्थ = संग। छाडेन्हि = छाड छोडति ( कुडति) का भूत-काल में बहु-वचन । लोग = लोक = प्राणौ। कुटुंब = कुटुम्ब = घर के लोग। निनार = निरालय निराल = अलग। सवर (स्मरयति )= स्मरण करता है। अकेला = एकाकी = एकल: (प्राकृत एक + दूल्ल स्वार्थ)। खेल =खेलति । सहस =सहस्र=