२५६ पदुमावति । १२ । जोगी-खंड । [ १३३ - १३३ की यही अभ्यर्थना है, कि) चित्तौर गढ का राज्य कौजिये, (बाहर योगी बन, वन वन न फिरिये ) (और हम-लोगों का) अहिवात रखिये ॥ १३३ ॥ चउपाई। तुम्ह तिरिआ मति हौन तुम्हारौ। मूरुख सेा जो मतइ घर नारौ ॥ राघउ जो सौता सँग लाई। राोन हरी कउन सिधि पाई ॥ यह संसार सुपन जस मेरा। अंत न अापन को केहि केरा ॥ राजा भरथरि सुनि न अजानी। जेहि के घर सेरह सई रानी ॥ कुचन्ह लिए तरवा सोहराई। भा जोगी कोउ संग न लाई॥ जोगिहि कहा भोग सउँ काजू। चहइ न मेहरौ चहइ न राजू ॥ जूड कुरुकुटा पइ भखु चहा। जोगिहि तात भात सउँ कहा ॥ दोहा। भौर। अल्प= कम। रावण = खन= सपना। कहा न मानइ राजा तजी सबाई चला छाडि सब रोअत फिरि कइ देइ न धौर ॥ १३४ ॥ तिरिया = स्त्री। मति = बुद्धि। हौन मूरुख मूर्ख = बेवकूफ। मत = मत करता है = सलाह करता है। घर = ग्रह । नारी = स्त्री से। राघउ = राघव दश-रथ के पुत्र, राम । मौता = राम-पत्नी। लाई = लगाई = लिया। रात्रीन लङ्का का प्रसिद्ध राजा। हरौ = हरद् (हरति) का भूत-काल। कउन = क्व नु = कौन । सिधि = सिद्धि। पाई = पाव (प्राप्नोति ) का भूत-काल। सुपन जम = यथा = जैसा। मेरा = मेला = जहाँ बहुत से लोग एकटे होते हैं। को=क्क नु = कौन। कहि केरा = किस का। भरथरि = भर्तहरि = संवत्-कर्ता-प्रसिद्ध उज्जयिनी के राजा, विक्रम के छोटे भाई । सुनि = सुनी = सुनदू (श्टणोति) का स्त्री-लिङ्ग में भूत- काल । अजानौ = अयानी= अज्ञानिनौ। मोरह = षोडश। सद = शत =सै। रानी राजी। कुचन्ह = कुच ( स्तन = छाती) का बहु-वचन । तरवा = पाद-तल = तल-पाद। सोहराई = मोहरावद् (सु-हारयति) का भूत-काल । भा= अभूत् = भया= त्रा। जोगी = योगौ । जोगिहि = योगी को। कहा = क्व हि = क्या = किम् । काजू = कार्य = काम । चहदू = (चदति वा चतति) चाहता है। चह परिकल्कने । (कल्कनं यायम् । ।
पृष्ठ:पदुमावति.djvu/३६२
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।