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१३२] सुधाकर चन्द्रिका । २५३ दृष्टि-गोचर हुा । द्रौपदी इस कमल को पा कर, बहुत प्रसन्न हुई और भौम-सेन से प्रार्थना की, कि नाथ दूस कमल के अनेक और पुष्य ले भाइये। इस पर भीम-सेन ढूंढने चले । मार्ग में हनुमान जी मिले। ( स भीम-सेनस्तच्छ्रुत्वा सम्प्रहृष्टतनूरुहः । शब्दप्रभवमन्विच्छंश्चचार कदलो-वनम् ॥ कदलो-वन-मध्यस्थमथ पौने शिलातले । ददर्श म महावाहुर्वानराधिपतिं तदा ॥ भारत वन-पर्व, १४६ अध्याय, श्लो० ७५-७६ ) हनुमान जी ने भौम-सेन से कहा, कि इस वन में श्रागे सिद्धों के विना गति नहीं। (अतः परमगम्योऽयं पर्वतः सुदुरारुहः । विना सिद्ध-गतिं वीर गतिरत्र न विद्यते ॥ देवलोकस्य मार्गोऽयमगम्यो मानुषैः सदा । कारुण्यात् त्वामहं वौर वारयामि निबोध मे ॥ भा० वन-प०, १४६ १०, ८२-८३ श्लो० ) हनुमान् और भौम-सेन से परस्पर परिचय होने से हनुमान् को कृपा से भौम-सेन ने कुवेर को वाटिका में उस पद्म के अनेक पुष्यों को पाया। भारत, वन- पर्व, अध्याय १४५-१५६ में दूस की सविस्तर-कथा लिखी हुई है। प्रसिद्ध है, कि अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और परशुराम ये सात चिर- जीवी दूसो कदलो-वन में रहते हैं। दूस वन में अमृत-फल होते हैं ॥ दूस वन में कन्जल के ऐसे हाथी बहुत रहते हैं दूसौ कारण कदाचित् किसी ने इस का नाम कन्जलि-वन रक्खा हो । परन्तु इस नाम का कहीं पता नहीं लगता। दूसौ कदलो-वन के अन्तर्गत-ही शिमचा है, जो कि आज कल यहां पर यौन में यूरोप के वासियों का प्रधान-स्थान है। अन्त में (सब को दशा) ऐसौ-हौ होगी, अर्थात् सब नष्ट हो जायंगे, ( इस बात को) देख कर, गुरु (शुक, वा ध्यान में 'सिद्ध होइ कहं गोरख कहा' इस से गोरख-नाथ ) ने (मुझे) उपदेश दिया है। (मो) मैं सिंहल-द्वीप (अवश्य ) जाऊंगा (और), हे माता, (यहौ) मेरा कहना है, अर्थात् यही मेरी श्राप से विनती है; आप मेरी माता हैं, मो विघ्न न पडिये, हर्ष से वहाँ जाने के लिये श्राज्ञा दीजिये ॥ १३२ ॥ अन्त में - ७