२४६ पदुमावति । १२ । जोगी-खंड । [१३० = पश्चात् -पौछ । - = निश्चिन्त = बे-खबर। मानुस मानुष= मनुष्य। श्राछ =अच्छ खच्छ =' अच्छौ। सजुग = सयुग = सहित योग के, अर्थात् सावधान । अगुमन = अग्रतः, वा श्रागमनतः = भागे-हौ से। पछिताउ: पछिताइ (पश्चात् तपति) का विध्यर्थ में लोट लकार के मध्यम-पुरुष का एक-वचन । पाछ सॉटे-बर्दार (सिपाही-खोग) (नगर में) चारो ओर आज्ञा को फिराया, अर्थात् घूम घूम कर राजा के हुक्म को सुनाया, कि राजा को कटक भई है, अर्थात् राजा को सेना चलने को तयार हुई है ॥ (मो) जितनी सब मामग्री हैं, जिन के विना (राह में ) रुकावट होती है, अर्थात् रुक जाना पडता है, उन सब को ले लेव ( क्योंकि ) दूर जाना है, अर्थात् एक दो दिन की बात हो, तो सामग्री के विना कष्ट को सह सकते हो। यहाँ तो कई महीनों की यात्रा है, दूस लिये सब मामग्री को लेना चाहिए ॥ (क्योंकि) मब कोई सिंहल-दीप को जाया चाहते हैं, जहाँ (राह में) मोल से (कोई ) सामग्रौ न पावेंगे, अर्थात् राह में कोई सामग्री-हो न मिलेगी, खरीदेंगे कहाँ से ॥ तहाँ, अर्थात् तिस राह में, सब (कुछ) अपनी साँटी से (दण्ड से ), अर्थात् सामर्थ्य से निवहता है। सामर्थ्य के विना (जो उस मार्ग में जाता है) मो (राह-ही में ) रह जाता है, (और उस का) मुख मट्टी हो जाता है, अर्थात् सामर्थ्य के विना (सामग्री विना) राह में मर कर गल-पच जाता है, पारीर मट्टी में मिल जाती है॥ (मो) राजा (उस राह में) योग को मज कर, अर्थात् योगी वन कर चला है, (दूस लिये) सब लोग तयारी करो, और शीघ्र चलो ॥ (सब लोग) गर्व से जो घोडे की पीठ पर चढते थे, (सो अब उस चढने के व्यापार को छोडो) अब भूमि में चलो (और) वर्ग को श्रोर दृष्टि करो, अर्थात् उस राह से लौटना कठिन है, सो खर्ग की ओर दृष्टि लगावो जो कि स्वामि-कार्य में शरीर-पात करने से अवश्य मिलता है ॥ (सो सब लोग चलो गुरु राजा से ), मन्त्र लेव, (और राजा के) सँग-लगू हो; (क्योंकि) आगे जा कर सब कोई गूदड हाँगे, अर्थात् गुदडौ पहन कर अपनी अपनी शरीर को गूदड सदृश करेंगे, अर्थात् योगी बनेंगे । (कवि कहता है, कि) अरे मनुष्य क्या वे-खवर (बैठा) है। (यह बे-खबरी अच्छौ नहीं किन्तु) अपनी चिन्ता करना (कि कौन हम हैं कहाँ से पाये, कौन मेरा प्रभु है, किस प्रकार से उस प्रभु से भेंट हो इत्यादि) अच्छा है ॥ (और) आगे-हौ से सावधान हो कर (सब कुछ ) ले लो, और उत्तम कमाई कर लो, (जिस में) पीछे
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