२४४ पदुमावति । १२ । जोगी-खंड । [१२६ मांस, (क्योंकि) काया में रक नहीं रहता है। (दूम लिये रक्त-मूलक मांस का प्रभाव हो जाता है), और (उस प्रेमी के ) नयनों में आँसू (भी) नहीं रहती। (प्रेम-रस को नशा से टकटको बँध जाती है, और पुतली पथरा जाती है, फिर पत्थर-सौ पुतली में कहाँ आँसू को आशा पाई जाय) ॥ पण्डित को, अर्थात् गणक को, भूल है; (वह) चाल, अर्थात् यात्रादि के मुहर्त्त को जानता-ही नहीं, अर्थात् उसे दूतना ज्ञान-ही नहीं, कि किस कार्य के लिये मुहर्त देखना आवश्यक है, और किस कार्य के लिये अनावश्यक है। (क्यों कि ) काल (प्राणियों के) जीव लेतौ वेला दिन (मुहर्त्त) नहौं पूछता। (जिस समय उस की इच्छा होती है, उसी समय जीव को ले लेता है) ॥ (और) क्या ( पति-वियोगा-ऽतुरा) बौरही मती पण्डित (पाँडे ) से पूँछती है, (कि अाज पति-शरीर के संग भस्म होने के लिये शुभ-दिन है ?)। और (यदि दैवात् शुभ-दिन न हुत्रा तो क्या वह) घर में पैठ कर, अर्थात् घर के भीतर जा कर, (अपने) भाण्डादिकों की रक्षा करती है,? अर्थात् क्या पति-वियोग-दुःख को भूल कर घर के वस्तुओं की रक्षा में लग जाती है ? ॥ (जिस दिन ) जो मरने के लिये चलता है, और गङ्गा में (शरीर-पात कर) गति (मोक्ष) को लेता है, उस दिन (उस को) कोई कहाँ दिन (मुहर्त्त) देता है। [इन सब बातों से कवि ने सूचित किया, कि ऐसे ऐसे अवसर में मुहर्त अनावश्यक है। घर में आग लगने पर, उम्र के बुझाने के लिये, यदि ज्यौतिषौ से मुहर्त्त पूंछो, और यदि उस के विचार से र घडी भर भद्रा हो (भद्रा में लोग कोई शुभ कार्य नहीं करते, दूस का विशेष वर्णन सिंहल से चित्तौर गढ को जहाँ रत्न-सेन ने यात्रा किया है वहाँ पर किया नायगा) तो ८ घडी भर ठहर जाने में सब घर-हौ भस्म हो जायगा; फिर बुझावोगे क्या ? । दमौ पर यह कहावत चली है, कि 'घडी में घर जलै नव घडी भद्रा ., मो ऐसे ऐसे अवसर में ज्योतिषी को मूर्खता है, कि मुहर्त लेने के लिये हठ करे] ॥ (ज्योतिषियों के कहने पर राजा ने कहा, कि ) मैं ने कहाँ का घर-बार पाया। घर-(बार) (और) शरीर अन्त में दूसरे को है, अर्थात् दुर्मुहर्त से घर-बार सम्पत्ति और शरीर-ही का न नाश होता है; सो ये तो अन्त में नाशवान् दून के रचा के लिये क्या मुहूर्त का पूंछना। ये तो सब पराये को थाती हैं। सो यदि अपनी वस्तु हो, तो भला रक्षा के लिये मुहर्तादि से यत्न उचित है। पराये की घाती में क्या वश, जब चाहे तब ले ले।
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