१२८] सुधाकर-चन्द्रिका। लटा लट, वा वातुल = बौरहा। लटा=रटा = रटदू (रटति) का भूत-काल । अरुझा अरुझद (आरुह्यते) का भूत-काल । पेम = प्रेम । परी= परइ (पतति) का भूत-काल । सिर = शिर । जटा = केशों के मिल जाने से शिर पर जो रस्सौ-सौलट पड जाती हैं। चंद-बदन = चन्द्र-वदन = चन्द्र-मुख = चाँद के ऐसा मुख । चंदन = चन्दन = सुगन्ध-द्रव्य । देहा = देह = शरीर। भसम = भस्म = राख । चढाइ = चढा कर। खेहा खेह = धूलो = मट्टी। मेखल = मेखला = मूंज के रस्सौ का कटि-बन्धन (कमर-बंद) जैसा कि यज्ञोपवीत होने के समय वटु पहनता है। सौगो = Pटङ्गी = हरिण के सौंग का बाजा जो मुह से बजाई जाती है, जैसे शङ्ख । चकर = चक्र = गोल । धंधारी= धन्धन के योग्य, (धन्धन = चिन्तन) -धंधा । धंधारी-चक्र = गोरख-धंधा । गोरख-पन्यौ साधु लोहे वा लकडी के शालाकाओं के हेर फेर से चक्र बना कर उस के बीच में छेद कर कौडौ को वा मालाकार डोरे को डाल देते हैं, और उसी कौडी वा डोरे को वार वार कुछ मन्त्र पढ पढ कर, निकाला करते हैं, और उस चक्र को गोरख-धंधा वा गोरख-धंधारी कहते हैं। विना क्रिया जाने उस चक्र में से सहसा किसी से वह कौडी वा डोरा नहीं निकलता। चक्र को सलाकाओं में ऐसा अरुझ जाता है, कि निकालना कठिन पड जाता है। जो निकालने की क्रिया को जानता है वह सहज में निकाल लेता है। गोरख-पन्थियों का विश्वास है, कि मन्त्र पढ पढ कर, गोरख-धन्धे के बीच से डोरा निकालने से गोरख की कृपा से ईश्वर प्रसन्न हो संसार-चक्र के बीच में पडे हुए डोरे के सदृश उस प्राणी को निकाल बाहर कर, मुक्त कर देता है। लोक में कौतुक के लिये जो बटुआ, सन्दूक, वा कोई यन्त्र ऐसे बनाये जाते हैं, जिन के बीच में रकते हुए पैसे इत्यादि खोलने की क्रिया न जानने-वालों से नहीं निकलते, उन को भी अब लोग गोरख-धंधारी कहते हैं। यह शब्द इस देश में ऐसा प्रसिद्ध है, कि यदि किसी से किसी वस्तु का भेद न खुले तो वह झट कह देता है, कि यह वस्तु गोरख-धंधा वा गोरख-धंधारी है। जोगोटा = योगोटा = योग को श्रोटने-वाला = योग को शुद्ध करने वाला योग को माफ करने-वाला, जैसे श्रोटने से रूई माफ होती है। जिस यन्त्र से रूई साफ की जाती है उस को पश्चिमोत्तर और अवध के प्रान्त में प्रोटनी वा पोटा कहते हैं। वा जोगोटा=योगोटा = योग का श्रोटा = योग का अाधार। जिस पर बैठ के स्त्रियाँ जाँता पोसती हैं, उसे इस प्रान्त में श्रोटा कहते हैं। रुदराछ = रुद्राक्ष = एक वृक्ष का फल, जिम में रुद्र के नेत्र (अक्ष)
पृष्ठ:पदुमावति.djvu/३२९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।