२३८ पदुमावति । १२ । जोगौ-खंड । [१२८ अथ जोगी-खंड ॥ १२॥ चउपाई। तजा राज राजा भा जोगी। अउ फिंगरौ कर गहउ बिजोगी। तन बिसँभर मन बाउर लटा । उरुझा पेम परी सिर जटा॥ चंद-बदन अउ चंदन देहा। भसम चढाइ कीन्ह तन खेहा॥ मेखल सौंगी चकर धंधारी। जोगोटा रुदराछ कंथा पहिरि डंड कर गहा। सिद्ध होइ कहँ गोरख कहा ॥ मुंदरा सवन कंठ जप-माला। कर उदपान काँध बघ-छाला ॥ पावरि पाँय लौन्ह सिर छाता। खप्पर लीन्ह भेस कइ राता॥ अधारी॥ दोहा। राज चला भुगुति माँगह कहँ साजि कया तप जोग । सिद्ध होउँ पदुमावति ( पाए) हिरदइ जेहि क बिजोग ॥ १२८॥ तजा= अत्यजत् = त्यागा। राज्य। भा=भया = = बभूव । जोगौ = योगौ। किंगरौ = किनकरौ= किन् किन् करने-वाली = एक तरह को चिकारौ जो पौरिये वा भर्तृहरि के गीत गाने-वाले योगौ लिये रहते हैं। गहेउ = गह का भूत-काल, गहदू =ग्टनाति । बिनोगौ = वियोगी = जिसे किसी का (जैसे यहाँ पद्मावती का) वियोग (विरह) हो। बिसँभर = विसम्भर = वेसंभार = जो सँभर न सके। बाउर =
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