२३० पदुमावति । ११ । पेम-खंड । [ १२५ दोहा। साधहि सिड्वि न पाइअ जउ लहि साध न तप्प । सो पइ जानइ बापुरा सौस जो करइ कलप्प ॥ १२५ ॥ करब=करण = - - सुदू = शुक ने। कहा = अकथयत् । सुनु = श्टणु = सुनो। मो मऊ= मुझ से । करना = कर्त्तव्य । पिरोति = प्रौति । हदू = अहदू =अस्ति । काजा= कार्य। अब-हौं = अभौं । जेअ = जेमति वा, जमति = जैवते हैं = खाते हैं। घर = ग्रह । पोई = पकी हुई = पकौ पकाई । बदठ = बइठा = बैठा = उपविष्ट हुा । बद्ठ = बठे बैठे। तह = तत्र। कोई = कोऽपि। वा, कोई = कॉई = कुमुदिनौ। पथ = पन्थाः = पथ = राह। लूटे = लुण्ठित हुए = लूटे गये । छूटे = छुटे = छुटकारा पाये मुक्त हुए। त्राहि = अहद् = अस्ति । सिंघल = सिंहल-दौप। राजू = राज्य । पाइअ = पाई जाती है। राज = राजा । माजू = माज = तयारी । उदासीउदासीन = संसार से विरक्त । जोगी योगी। जती = यतौ। तपा तपखी। सनित्रामौ = सन्यामी। (योगी, यती, तपस्वी और मन्यासी के लिये ३० वें दोहे को टौका देखो)। जोग = योग । जोरि = जोडयित्वा जोड कर। पादूत = पाया जाता है। भोगू = भोग । तजि = प्रात्यज्य = त्याग कर । कित कुतः = कहाँ ॥ साधहि = श्रद्धा से = इच्छा से। साध = साधे = साधयेत् । तप्प = तप= तपस्या। बापुरा= वापुरः = बपुरा = गरौब । सौस = शौर्ष कल्पन = छेदन (कृपू छेदने, आक्षिप्त अर्थ ) ॥ शुक ने कहा, (कि) राजा, मुझ से सुनो, प्रौति करना कठिन कार्य है ॥ तुम अभी घर (बैठे) पकी पकाई जैवो, (मो जिस के मन में) कमल नहीं बैठा है, अर्थात् कमल नहीं बसा है, तहाँ, अर्थात् तिम के मन में , (चाहे) कोई बैठे, अर्थात् बसे, वा तहाँ कॉई बैठे ॥ ( परन्तु जिस के मन में कमल बस गया फिर वह दूसरे को चाह नहीं करता, उसी कमल के लिये तडपा करता है। इस बात को) भ्रमर जानते हैं, जो कि तिस (कमल की) राह में लुट गये हैं, और जीव को (भौ) दे दिये हैं; (परन्तु जीव) देने पर (भौ) छुटकारा नहौं पाये, अर्थात् कमल-वासना की खालमा से जो मरे, तो दूसरे जन्म में भी भ्रमर-हौ हो कर फिर इसी दशा में प्रवृत्त हुए, क्योंकि भगवद्गीता में भगवान् कृष्ण का वाक्य है, कि । कलप्प 9 .
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