२२६ पदुमावति । ११ । पेम-खंड । [१२३ . -
जागा जानों बौरहा सो कर जागा हो ॥ जैसे जगत् में आने के समय, अर्थात् जन्म के ममय बालक रोता है, (उमौ प्रकार राजा भौ) रो उठा, अर्थात् 'कहाँ कहाँ' करने लगा। जन्म के समय जब बालक माता के उदर से बाहर धरती पर श्राता है, तब उस के रोने में 'कहाँ कहाँ' ऐसौ ध्वनि होती है। इस पर पुराणों में कथा है, कि माता के उदर में मलाशय के पास नाल से वेष्टित बालक अधोमुख पड़ा रहता है, और उसे गर्भ के भीतर अहर्निश भगवान् का दर्शन होता रहता है, जिस से वह सर्वदा प्रार्थना किया करता है, कि हे भगवन, इस गर्भ-कारागार और नाल-बन्धन से मुझे निर्मत करो, मैं बाहर निर्मुक होने पर सर्वदा श्राप का भजन करता रहूँगा। बाहर आने पर उस भगवान् को न देख कर, वह बालक रो रो कर, लोगों से पूछता है, कि वह दिव्य-पुरुष 'कहाँ है, कहाँ है?' दूमौ से उस के रोने में 'कहाँ कहाँ' ध्वनि होती है। संसार में आने पर विषय-वासना में अवलिप्त हो कर, वह बालक भगवान् से भजन करने, और संसार के विषयों से दूर रहने की प्रतिज्ञा को भुला देता है; दूमी पर विहारौ ने मतमई में लिखा है, कि - भजन कह्यौ ता ते भज्यौ भज्यौ न एक-ड वार । दूर भजन जा तें कह्यौ मो दूं भज्यौ गवाँर ॥ लाल-चंद्रिका । दो. कवि कहता है, कि हा, वह (सो) (राजा रत्न-सेन ने अपने ) ज्ञान को खो दिया, अर्थात् बौरहा हो गया ॥ ( और लगा कहने, कि) मैं तो जहाँ अमर-पुर है, तहाँ था, अर्थात् प्रेम-मय हो ध्यानावस्था से मुक्ति-स्थान में पहुँच गया था, यहाँ कहाँ मरण-पुर, अर्थात् मृत्यु-लोक, में पाया ॥ किम (मेरे) मरने का उपकार किया है, अर्थात् मुझे मारने के लिये यत्न किया है, कि दूस मरण-पुर में मुझे ले आया है। किस ने शक्ति (= पद्मावती, राजा के पक्ष में ) को पुकार कर (मेरा) जीव हरण कर लिया ॥ जहाँ सुख की शाखा (चारो ओर से फैली थी तहाँ सुख से ) सोता था, ब्रह्मा ने क्यों नहीं (कस न) तिमी स्थान में (मुझे) मोता हुआ रकबा ॥ (मो हा), अब तो जीव तहाँ (मुक्ति-स्थान में बमा), और यहाँ (विना जीव के) तनु शून्य, प्राण विना कब तक रहेगी। यदि (जो) काल के हाथ से जीव क्षीण होगा, (तो वह) क्षीण होना अच्छा है, किन्तु (शरीर) जीवन के साथ, अर्थात् शरीर में रहते, यदि जीव क्षीण होता जाय तो अच्छा, क्योंकि चौण होते होते जीव और शरीर दोनों एक साथ-ही नष्ट हाँगे, दूस