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१२३] सुधाकर-चन्द्रिका। २२५ चउपाई। जो भा चेत उठा बइरागा। बाउर जनउँ सोइ अस जागा ॥ आवत जग बालक जस रोत्रा। उठा रोइ हा ग्यान सो खोपा ॥ हउँ तो अहा अमर-पुर जहवाँ। इहाँ मरन-पुर आपउँ कहवाँ ॥ के उपकार मरन कर कौन्हा। सकति हकारि जीउ हरि लौन्हा ॥ सोअत अहा जहाँ सुख साखा । कस न तहाँ सोबत बिधि राखा॥ अब जिउ तहाँ इहाँ तन सूना। कब लगि रहइ परान बिहूना ॥ जो जिउ घटिहि काल के हाथा । घटन नीक पड् जीअन साथा ॥ दोहा। अहुठ हाथ तन सरवर हित्रा कवल तेहि माँह । नयनहिँ जानउँ नौअरे कर पहुँचत अउगाह ॥ १२३॥ बदूरागा=वैराग्य । बाउर वातुल = बौराहा। रोत्रा =रौति = रोता है। ग्यान = ज्ञान। खोत्रा = खो दिया = नष्ट कर दिया। अहा = त्रासीत् = था। अमर-पुर मुक्ति-स्थान । जहवाँ = यत्र । मरन-पुर = मरण-पुर = मरण-स्थान = मृत्यु-लोक। कहवाँ कुत्र = कहाँ। सकति = शक्ति = एक प्रकार का अस्त्र जिस से मेघनाद ने लक्ष्मण को मारा था। हकारि= हे कृत्वा = श्राहानं कृत्वा = हँकार कर = पुकार कर । हरि लौन्हा

हरण कर लिया = चुरा लिया। साखा = शाखा। बिधि= ब्रह्मा । सूना शून्य

खाली = छूछा। परान = प्राण । बिहूना = विहीन = विना। घटिहि = घटेगा = क्षीण होगा। काल = प्राण लेने-वाला। हाथा हस्त = हाथ । घटन = घटना = कम होना। नौक = अच्छा । पद = किन्तु = परन्तु । जीवन = जीवन। माथा = सार्थ सङ्ग॥ अठ = अनुठ = अनुत्थ = न उठने योग्य । तन = तनु = शरीर। सरवर = सरोवर =तडाग। हिश्रा = हृदय । माँह = मध्य । नौअरे = निकट = नगौच। कर = हस्त = हाथ । पहुँचत = पहुंचने में । अउगाह = अवगाढ = अति कठिन = दुर्गम ॥ (राजा को ) जो चेत हुश्रा (भा = अभूत् ), (तो) वैराग्य से उठा, अर्थात् चेत होने पर जो उठा तो संसार से विरक्त हो गया, (और उस अचेतनावस्था से ) ऐसा 29