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२२४ पदुमावति । ११ । पेम-खंड । [१२२ (सर्प-विष उतारने-वाले) थे सब आये, और श्रोझा, वैद्य और चतुर लोग भी बोलाये गये, (कि परीक्षा से यह तो मालूम हो, कि राजा को कौन बीमारी है ) ॥ (सब कोई राजा को) चेष्टा को चरचते हैं, अर्थात् चेहरे की रंगत से पता लगाते हैं, कि राजा को क्या हुआ है; और नाडी को (भौ) परखते हैं । (परीक्षा से लोगों निश्चय किया, कि राजा को जो रोग है, उस की) श्रौषधि निकट तिम (राजा) को वाटिका में नहीं है॥ (क्याँकि) राजा को लक्ष्मण को दशा हुई है, हृदय में पडा शक्ति बाण मोह रहा है, अर्थात् मूर्छित कर रहा है। [ लक्ष्मण के पक्ष में शक्तिरेव बाणः शक्ति-बाण: ऐसा कर्मधारय से विग्रह करना चाहिए, और राजा रत्न-सेन के पक्ष में शक्तः ( शक्तिरूपायाः पद्मावत्याः ) बाण: शक्ति-बाण: ऐसा षष्ठी तत्पुरुष से विग्रह करना चाहिए ॥ तहाँ, अर्थात् शक्ति-बाण के प्रभाव के हरण करने में राम और हनुमान-ही प्रधान हैं, सो (वे राम-हनुमान् ) तो बडी दूर हैं, अर्थात् देव-खरूप हो विष्णु-लोक में विहार करते हैं, (फिर) कौन सञ्जीविनी मूरि को ले श्रावे (जिस से राजा अपने चेत में हो, अर्थात् सब ने निश्चय किया, कि रोग असाध्य है, विना भगवद-ऽनुग्रह से नहीं अच्छा हो सकता) ॥ जितने गढ-पति हैं (सब राजा से ) विनय करते हैं (गढ-पति के लिये ४४ वे दोहे की टोका देखो), (कि आप ने ) क्या जीव किया है, अर्थात् कैसा छोटा जीव किया है ? और कौन (बात आप को) मति में मत गई है ? ॥ किस के विना (श्राप का घर) सूना (शून्य ) है ? उस (मो) पौडा को कहिये, (क्योंकि आप के लिये जगत् में कोई पदार्थ दुर्लभ नहीं है, आप का ऐसा प्रताप है, कि यदि) आप (तुम्ह) माँगें (तो) समुद्र और सुमेरु (जो रत्नमय और सुवर्णमय हैं) (भी आप के प्रताप के भय से चले) श्रावे, (औरों को क्या गिनती है)। जिस वाटिका में वह वल्लौ है (जिस के लिये आप मरे जाते हैं) तहाँ दूत को पठाइये, लाख दश रुपये दीजिये, अर्थात् खर्च कौजिये, और सब सेना से (उस बेल को) श्रानिये, अर्थात् ले भाइये, (कादरों के ऐसा रोने गाने से क्या फल )। गढ-पतियों ने तीनों राज-नौति को देखा दिया, कि यदि किसी के मेल से मिले तो मेल के लिये दूत भेजिये, द्रव्य से मिले तो द्रव्य खर्चिये, और यदि युद्ध से मिले तो सेना को भेजिये; आप के पास सब सामग्री मौजूद है, कादर होने से जगत् में केवल उपहास छोड और कुछ भी प्राप्ति नहीं है ॥ १२२ ॥