१२१] सुधाकर-चन्द्रिका ।। २२२ तरामद 1 - निसाँस = निःश्वास = बे-दम । निसँसदू = निश्वास लेता है = हाँफता है। बउराई = बातुल हो कर । पौत = पौला । सेता = श्वेत = सफेद । चेत = चैतन्य = सावधान। पेम-बेवसथा प्रेम-व्यवस्था = प्रेम की स्थिति। जिउ = जीव । दसउँ= दशम = दस । अवसथा = अवस्था = समय ॥ लोहार = लोह-कार ने = लोहार ने। हर = हरण करता है। = त्रासता है = डेरवाता है। वा, तरामदू = तरासता है = कतरता है। प्रतना = यत् । श्रात्रा = पाता है। करदू = करोति = करता है। तराहि = त्राहि =रच ॥ राजा (रत्न-सेन, शुक के मुख से पद्मावती के नख-शिख का वर्णन सुनते-हौ) मूर्छित हो गया। (उस को ऐसी दशा हो गई) जानों सूर्य को लहर आ गई, अर्थात् सूर्य के तेज के लहर से जैसे जेठ में मनुष्य व्याकुल हो कर मूर्छित हो जाता है, उसी प्रकार ज्योतिः-खरूपा पद्मावती के वर्णन सुनने से कर्ण-द्वारा सूर्य से भी अधिक तेजो-मय वह ज्योति राजा के हृदय में धंस गई; इस से राजा अचेत हो गया ॥ ( कवि कहता है, कि) प्रेम-घात का दुःख कोई नहीं जानता, वही निश्चय कर के जानता है जिसे, कि यह श्राघात लगता है, अर्थात् जो इस दुःख को भोग चुका है, वही दूस के मर्म को जान सकता है, दूसरा क्या जाने; कबौर-दास ने भी कहा है कि, 'जेहि तन पर माई तन जानद दोसरा का जान रे भाई'। और लोक में भी कहावत है, कि 'जा के पैर न फटौ बेवाई। सो का जानद् पौर पराई ॥' वह (मो) (राजा रत्न-सेन ) अपार, जिस का पारावार नहीं, ऐसे प्रेम के समुद्र में पड़ गया, (दूस लिये उस समुद्र के) लहर लहर पर बे-खबर होता जाता है। एक एक अङ्ग के सुन्दरता का स्मरण होना-ही उस प्रेम-समुद्र का लहर है, जिस के कारण वार वार बे-खबर हो रहा है ॥ (उस समुद्र में पद्मावती का) विरह जो है, सोई भवर (श्रावर्त्त) हो कर, (राजा को) भावरी देता है, अर्थात् घुमा कर, नौचे ऊपर ले जा रहा है, (जिस के कारण ) क्षण क्षण जौव हिलोरा को लेता है, अर्थात् क्षण क्षण जीव नौचे ऊपर डवाँ-डोल हो रहा है। एक क्षण में विना श्वास का हो जाता है, अर्थात् बे-दम हो जाता है, (और उस समुद्र में ) जीव डूब जाता है, ( नाडौ का चलना बंद हो जाता है, शरीर विना जीव के हो जाती है)। (और फिर एक) क्षण में (घबडा कर) उठता है, (और ) पागल हो कर, साँस छोडता है, अर्थात् विरह से ठण्डी साँस लेता है ॥ क्षण में चहरा (मुख) पौला होता है, क्षण में सफेद हो जाता है; (राजा) क्षण में चैतन्य हो जाता है, क्षण में अचेत हो जाता है, अर्थात् उम प्रेम-समुद्र में . 11 .
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