१६८ पदुमावति । १० । नखसिख-खंड । [९१४ चउपाई। कनक-डंड दुइ भुजा कलाई। जानउँ फेरि कुँदेरइ भाई ॥ कदलि-खंभ कइ जानउँ जोरी। अउ राती ओहि कवल-हथोरी ॥ जानउँ रकत हथोरौ बूडौ। रबि परभात तात वेइ जूडौ ॥ हिा काढि जनु लौसि हाथा। रुहिर भरी अँगुरौ तेहि साथा ॥ अउ पहिरे नग-जरौ अँगूठौ। जग बिनु जौउ जौउ ओहि मूठौ ॥ कंगन टाड सलोनौ। डोलत बाँह भाउ गति लानी जानउँ गति बेडिन देखराई। बाँह डोलाइ जौउ लेइ जाई ॥ बाँह दोहा। भुज उपमा पउ-नारि न ( पूजइ) खौन भई तेहि चित्त । ठाउहि ठाउँ बेध भइ (हिरदइ) अभि साँस लेइ नित्त ॥ ११४ ॥ कनक-डंड कनक-दण्ड = सुवर्ण का दण्ड ( यष्टि )। भुजा भुज = हाथ । कलाई = केहुनी से मिला नौचे का भुज-भाग। कुँदेर = कुदेरे से ( लकडी के सुडौल रंग विरंग के कुंदे से जो तरह तरह के लट्टू, चकई, फिरहरौ, भौंरे, सिंधोरे इत्यादि खेलौने खराद खराद कर, बनाते हैं, उन्हें इस प्रान्त में कुँदेरा कहते हैं, यह प्रसिद्ध शब्द है)। कदलि-खंभ = कदलो-स्तम्भ = केले का खंभा। जोरौ = जोडौ = युग्म युगल । रातो रक्त वर्ण को = लाल । कवल-हथोरौ = कमल-हस्ततल = कमल के ऐसौ हथेली। रकत = रक्त = लोहू । बूडी = बूड गई है = डूब गई है। रबि = रवि = सूर्य। तप्त = गर्म। जूडी = जड हैं = ठंढी हैं। रुहिर = रुधिर = लोहू । अंगुरौ = अङ्गुल्यः = अँगुलियाँ । साथा = सार्थ = सहित। पहिरे = पहने हैं = परिधान किये हैं। नग-जरौ= नग-जटित = नग से जडौ हुई। अँगूठौ अङ्गुलीयक = मुदरौ । मूठौ= मुष्टि। कंगन = कङ्कण टडिया = बाँह का एक आभूषण, जो बाजू के ऊपर स्त्रियाँ पहनती हैं। यह पश्चिम अयोध्या, परतापगढ, सुलतापुर इत्यादि जिले में बहुत प्रसिद्ध है, पहले ताडङ्क के ऐसा ताल-पत्र का बनता था, दूमौ से (ताल = ताड) यह नाम पडा। दूस को श्राकृति अनन्त के ऐसी होती है। स-लोनी = स-लवण = नमकीन = रुचि-दार। गति = गमन = चाल= दूधर उधर बाहु का 1 परभात= प्रभात=प्रातःकाल । तात कडा। टाड =
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