११३] सुधाकर-चन्द्रिका। 1 सदृश जान पडता है, जिस में से उन नम-रूपी तारों की झलक देख पडती है) ॥ जानों कुंदे को फेर कर, अर्थात् खराद से सुडौल गोल कर, (उस में ब्रह्मा ने उस गले को) काढा है, अर्थात् खोदा है। (अथवा गले को ऐसौ शोभा है), जानों खडी हुई ठगिन पिचार को हरण करती है, अर्थात् गले की शोभा पिचार के गले को शोभा को चारा लेती है ॥ (अथवा गले की ऐसी शोभा है), जानों (देखने-वाले का) हृदय काढ (निकाल ) कर, कबूतर खडा हो। (अथवा) तिस से भी अधिक भाव गोवा में बढा हुआ है, अर्थात् कबूतर के गले से भी बढ कर वह यौवा है ॥ (अथवा ब्रह्मा कुलाल ने) चाक पर चढा कर, जानों ( पद्मावती के गले को) साँचा बनाया (कौन्ह ) है, अर्थात् जगत् में इतर प्राणियों के यौवाओं का माँचा पद्मावती को ग्रीवा है; दूसौ से और लोगों को ग्रीवा उत्पन्न हुई है। (अथवा) जानाँ (किमो ने ) घोडे की बाग पकड लौ हो, (जिस से वह घोडा लाचार हो, गर्दन उठाये अचल ज्याँ का त्यों खडा है), अर्थात् गर्दन उठाये हुए घोडे की ग्रीवा के ऐसौ पद्मावती को यौवा है ॥ मयूर और मुर्गा जो ( पद्मावती को ) ग्रोवा से हार गये हैं, (इसौ लिये ) सन्ध्या और प्रातःकाल में उमौ (हार) को पुकारा करते हैं, अर्थात् पद्मावती को ग्रौवा-शोभा से अपनी ग्रोवा-शोभा के घट जाने से जो इन दोनों को हार हो गई, इसौ से व्याकुल हो सन्ध्या और प्रातःकाल में, मयूर 'मुण्उँ मुण्उ' और मुर्गा का कहूँ क्या', चिल्लाया करते हैं। यह कवि को उत्प्रेक्षा है ॥ फिर तिमी स्थान में, अर्थात् तिस गले में तीन रेखा पड़ी हुई हैं (उस स्वच्छ काँच की मौसौ-सदृश गले के भीतर पद्मावती) जो (पान को) पौक घाँटती है, उस को सब लोक तौनों रेखा-दार से) देख पडती है, (जिस से और भी यौवा को शोभा चढ बढ गई है) ॥ ब्रह्मा ने उस को ग्रीवा में धन्य भाव, अर्थात् विलक्षण शोभा दिया है, (मो) देखें (पद्मावती के गले को ले कर) किस से मिलाव करता है, अर्थात् देखें कौन ऐसा सर्वोत्तम भाग्यशाली है, जिस के गले में ब्रह्मा पद्मावती के गले को मिलाता है। कण्ठ में श्री-मुक्तावली माला और और ग्रीवा के श्राभरण, कंठी, कंठा, टोक इत्यादि मोहते हैं। (मो देखें) कौन हार हो कर, (उस के ) कण्ठ में लगता है, कौन जौव से तप को माधा है, अर्थात् किस को ऐमी उग्र तपस्या है, जो कि पद्मावती के गले का हार हो कर, उस के गले में लगे ॥ १ १३ ॥ उन
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