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१८२ पदुमावति । १० । नखसिख-खंड । [१११ जिन सुन्दरी गौर-वर्ण युवतियों के बायें गाल पर खभावतः तिल नहीं रहता, वे लोग अपनी शोभा बढाने और रमिकों के मन को विशेष कर अपनी ओर दौडाने और रिझाने के लिये उस पर तिल-सदृश एक गोदना गोदा लेती हैं। यह दूस प्रान्त मैं इतना प्रसिद्ध है, कि ग्राम्य लोग भी अपनी कविता में ‘गोरे गाल पर काला गोदनवाँ रिझिहैं तार सजना' इत्यादि गाया करते हैं ॥ जानौं उसी कर- मुहँ तिल से घुईंचो (उत्पन्न हुई) है, (नीचे गाल को लालो मिल कर तिल को शोभा ऐसी है, जानौँ दूसो शोभा से धुंधुचौ बनौ है)। (अथवा तिल को ऐसौ शोभा है, जानौँ) सामने विरह-बाण साधा है। कवि को उत्प्रेक्षा है, कि तिल देखने पर ऐसा चित्त बे-चैन हो जाता है, जानौँ पद्मावती ने तिल-रूपी विरह-बाण को सामने जो साधा है, उसे देख कर घबडा गया है, कि कदाचित् चला कर प्राण न ले ले ॥ कवि कहता है, कि मुझे यह सूझ पडता है, कि जानौँ तिल अग्नि-बाण है, क्योंकि एक कटाक्ष से, अर्थात् एक नयनकोर-चितवन-महित तिल-बाण के चलाने से, दश लाख जूझ गये हैं, अर्थात् दश लाख दर्शक एक-हौ तिल-बाण से मूर्छित हो गये हैं, मो यह धर्म तो केवल अग्नि-बाण-हो में है ॥ अथवा यदि 'लाख' ". लक्ष्य' का अपभ्रंश मानो तो 'एक-ही कटाक्ष से (दर्शकों के ) दशो (इन्द्रिय-रूपी) लक्ष्य मर गये हैं, अर्थात् दशो इन्द्रियाँ मूर्छित हो शक्ति-रहित हो गई हैं', ऐसा अर्थ कर सकते हो। 'एक कटा छ लाख दम जूझा' ऐसा लिखने से, दश लाख = १०,००,००० दूस में से एक को काट लेने से ००० ००० ये छ शून्य (व्यर्थ होने ) से दशो लाख को संख्या नष्ट हो गई। इसी प्रकार तिलाग्नि-बाण से एक (दर्शकों का मन ) कट जाता है, जिस से छ (छ अङ्ग, नासिका, कान, नेत्र, मुख, हाथ, और पैर सब) व्यर्थ होने से दश लाख (दर्मक) जूझ जाते हैं, ऐसा बहुत लोग वागाडम्बर से दूसरा अर्थ करते हैं ॥ पद्मावती को प्रकृति और तिल को उस को माया मानने से उस माया-बाण से दश लाख, अर्थात् अनन्त प्राणौ लोग, जूझ जाते हैं, यह कवि का कहना ठीक-ही है। (शक कहता है, कि राजन्,) वह गाल का तिल मिट नहीं गया हैं, (किन्तु जवानी में जैसे सब अङ्ग बढ कर सु-रङ्ग और मनोहर हो जाते हैं, तैसे-हौ बढ कर प्रबल हो), अब वह गाल (का तिल) जग का काल हो गया है, अर्थात् जगत् के प्राणियों का प्राण लेने-वाला हो गया है॥ (हौरा-मणि शुक कहता है, कि उन तिलों को) देखते (मेरे) नयनों में (उस तिल कौ) परछाँही पड गई है। तिसौ से