१७८ पदुमावति । १० । नखसिख-खंड । - (हौरा-मणि कहता है, कि) बरुनी का क्या बर्णन करूं, अर्थात् वर्णन नहीं कर सकता । वह ऐसौ (इमि = दूव) बनी है, जानों दोनों सेनाओं ने बाणों को माध रक्खा है, (ऊपर की पलक-ओर एक सेना और नौचे पलक की ओर दूसरी सेना है, और एक एक पति में खडे दोनों ओर बरौनी के बार सधे हुए बाणों के समान हैं) ॥ ( एक श्रोर) राम (और दूसरी ओर ) रावण की सेना (जानौँ) जुटौ है। और दोनों नयन (उन सेनाओं के ) बीच में समुद्र हुए हैं। [ऊपर की पलक पर राम-सेना है जो कि समुद्र उतर लङ्क (कटि) कौ श्रोर श्राने चाहती है, और निचलौ पलक पर रावण-सेना है। इस में श्राश्चर्य यही है, कि रावण को अोर सुग्रीव ( पद्मावती को सुन्दर ग्रोवा), हनु, और अङ्गद (बाड का भूषण ) मिल गये हैं। ऐसौ कल्पना से यहाँ कविता में बहुत-ही रोचकता प्राप्त होती है।] (उस समुद्र के) वार पार (सैन्य के योद्धा-गण ) बाण-पतियों को साधे हुए हैं, विष से बंधी (विष-बाँधे), अर्थात् विष-मय, वे वाण-पङ्क्ति जिस की ओर हेरती हैं (देखती हैं ), उसे-हौ लग जाती हैं, अर्थात् यह ऐसौ विलक्षण बाण-पति है, कि इस के सन्मुख जो गया, देखते-हौ उस के अङ्ग में लग जाती है, और दर्शक बेचारा दूझ को विष-वेदना से व्याकुल हो, कुल-मर्यादा को तोर, तोर मोर करता उसी की ओर कर मरोर मरोर मरा जाता है, और वह बाण- पति ज्याँ कि त्यों अपने स्थान पर अचल खडी दर्शक-लीला देख देख लहराया करती है ॥ ऐसे कौन कौन है, जो जो कि उन बाणों से न मारे गये हों, अर्थात् संसार में ऐसा कोई हई नहीं है जिसे वह बाण न लगा हो, (इस लिये) वह बाण समग्र संसार को बेध रहा है। श्राकाश में चमकोले तारे जो गिने नही जाते, अर्थात् असङ्ख्य हैं, वे सब उसी बाण (बरौनी-बाण ) से हने गये हैं (जिस से श्राज तक वे आकाश में जहाँ के तहाँ मुर्दा से अचल पडे हैं, बरौनौ-बाण के भय से धरती पर नहीं आते, यह कवि की उत्प्रेक्षा है)॥ वे बाण धरती में सब को बेध रकबे हैं । ( पृथ्वी में) वृक्षों में जितनी शाखायें खडी हैं, उन्हें शाखा न समझो, वे सब बरौनौ-बाण के रूपान्तर हैं ॥ मनुष्य के तन (= तनु ) में रोएँ रोएँ (निश्चय समझो, कि वे-हौ बरौनी- बाण) खडे हैं, ये बरौनी-बाण ऐसे कठिन (गाढ ) हैं, कि (मनुष्य-तनु को रोम-व्याज से ) सूत सूत पर वेध डाले हैं, अर्थात् छिद्र कर डाले हैं। इस प्रकार से यह बरौनौ बाण ऐसी उत्पन्न हुई है, जो कि रण (अर्थात् रण में योद्धाओं को) और बन के वृक्षों को बेध डाला। पशुओं के तन में जितने रोम है,
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