१०१ - १०२] सुधाकर-चन्द्रिका। उत्प्रेक्षा है, कि वे अयोग्य, पद्मावती के केश को समता करने की जो इच्छा किये दूसौ अपराध से वे आपस में अरुझ-रूपो बन्धन से बँधवा कर कैद किये गये ॥ मनु इत्यादिकों के मत से यद्यपि नाग और सर्प में भेद है तथापि भाषा में दून का अभेद है (मनु-स्मृति के १ अध्याय का ३७ वाँ श्लोक ‘यक्षरक्षःपिशाचांश्च गन्धर्वाप्सरसोऽसुरान् । नागान् मर्पान् सुपर्णांश्च पितॄणां च पृथग् गणान्' ) ॥ अष्टकुल नाग के ये हैं - वासुकि १ । तक्षक २ । कुलक ३। कर्कोटक ४ । पद्म ५ । शङ्खचूड ६ । महापद्म ७ । धनञ्जय ८॥ वासुकि तक्षकं चैव कुलं कर्कोटकं तथा । पद्मं च शङ्खचूडं च महापद्मं धनञ्जयम् ॥ पूजयेगन्धमाल्याद्यैर्नागानष्टौ प्रयत्नतः । (वास्तुरत्नावलौ पृ. ८७) ॥ १० १ ॥ चउपाई। बरनउँ माँग सौस उपराहौँ। सेंदुर अब-हिं चढा जेहि नाही बिनु सैंदुर अस जानउ दिया। उँजिअर पंथ रइनि मँह किया ॥ कंचन-रेख कसउटी. कसौ। जनु घन मँह दाविनि परगसौ ॥ सुरुज किरन जनु गगन बिसेखौ। जवुना माँझ सरसुती देखी ॥ खाँडइ धार रुहिर जनु भरा। करवत लेइ बेनी पर धरा ॥ तेहि पर पूरि धरौ जो मौतौ। जाना माँझ गाँग कइ सेाती ॥ करवत तपा लोन्ह होइ चूरू । मकु सो रुहिर लेइ देइ से दूरू । दोहा। कनक दुादस बानि होइ चह सोहाग वह माँग। सेवा करहि नखत अउ (तरई) उए गगन जस गाँग ॥ १०२ ॥ उपराहौँ = उपरि। सेंदुर = सिन्दूर। दिवा = दीप = दीया। रनि = रजनौ रात। कसउटौ = कष-वटी = सोना कसने के लिये काले पत्थर को बटिया। दाविनि = दामिनी = सौदामिनी बिजली। परगसी प्रकाश हुई। सुरुज = सूर्य । जईंना = यमुना नदी। सरसुती = सरखती। खाँडदू = खाँडा तलवार । रुहिर = रुधिर । 1 खण्डक=
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