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पदुमावति । १० । नखसिख-खंड । [१०१ अथ नखसिख-खंड ॥१०॥ चउपाई। का सिँगार ओहि बरनउँ राजा। ओहि क सिँगार ओहो पइ छाजा ॥ प्रथम-हि सौस कसतुरी केसा। बलि बासुकि को अउरु नरेसा ॥ भवर केस वह मालति रानी। बिसहर लरहिं लेहि अरघानी॥ बेनी छोरि झारु जो बारा। सरग पतार होइ अँधियारा॥ कोवल कुटिल केस नग कारे। लहरई भरे भुअंग बिसारे॥ बेधे जानु मलय-गिरि बासा। सीस चढे लोटहिँ चहुँ पासा ॥ घुघुर-वार अलकइँ बिख-भरी। सँकरइ पेम चहिँ गिण परी ॥ दोहा। अस फंद-वारि केस वेइ (राजा) परा सौस गिण फाँद । असट-उ करी नाग सब उरझ केस के बाँद ॥ १०१ ॥ सिंगार = टङ्गार। केसा = केश = बार। बासुकि = वासुकि = नागों का राजा। बिसहर = विषभर = विष से भरे। वा बिमहर = बेसँभार = बेखबर = मस्त । वा बिसहर = विषधर । अरघानौ = आघ्राण। लेहिँ अरघानौ = श्राघ्राण लेते हैं = सूंघते हैं सुगन्ध लेते हैं। बेनी वेणी = चोटौ । सरग = स्वर्ग। पतार = पाताल । अधिभारा अन्धकार। कोवल = कोमल। नग = नाग = सर्प। वा नग = पर्वत। भुअंग = भुजङ्ग = सर्प।