४८] सुधाकर-चन्द्रिका। - दशा है, जैसे ) जल के विना मौन (मत्स्य ), वा रक्त के विना शरीर ( काय ) ॥ (सूर्य- रूपी पद्मावती की मूर्ति जो हृदय में विकसित हुई, उस के) किरण के कला (प्रभाव ) से (हृदय में ) प्रेम का अङ्कुर उत्पन्न हुआ, (सो) यदि स्वर्ग में भी वह शशी ( पद्मावती) हो, तो भी सूर्य हो कर (उस से) मिलूँ ॥ प्रेम से राजा विक्कल हो गया, दूसौ से अपने और पद्मावती में अभेद समझ, कभौं पद्मावती को सूर्य, कभी चन्द्र कहता है। सहस्रों किरण-वाला, अर्थात् सूर्य-सा जो ( पद्मावती का) रूप, उस में (मेरा) मन भूल गया, (दुस लिये) जहाँ जहाँ दृष्टि करता हूँ, तहाँ जानाँ कमल-हौ फूला है, अर्थात् जहाँ दृष्टि करता हूँ, तहाँ पद्मावती कमल-ही देख पडती है, अर्थात् कौट भृङ्ग को दशा हो गई है | भृङ्ग पर-दार एक प्रसिद्ध कौट है, जिसे भाषा में बिलनी कहते हैं। उस का खभाव है, कि किसी विजातीय कृमि को ले पा कर अपने घर में रख देता है। रखने के समय उस को एक डङ्क मार देता है। उस की वेदना से उस कौट को बडा भय हो जाता है, और दिन रात भृङ्ग-हौ के ध्यान में मग्न हो जाता है, कि फिर पा कर डङ्क न मारे। मो भृङ्ग के ध्यान में मग्न रहते रहते कुछ दिनों में वह कौट भृङ्ग-स्वरूप हो जाता है। वेदान्तौ लोगों का सिद्धान्त है, कि जिस प्रकार भृङ्ग के एकाग्र ध्यान से कौट भृङ्ग-स्वरूप हो जाता है, उसी प्रकार यह जौव ब्रह्म के एकाग्र ध्यान ब्रह्म-मय हो जाता है। (मो) जहाँ पर सु-गन्ध से भरा कमल (पद्मावती) है, तहाँ जीव भ्रमर हो गया, (और) चन्द्रमा (शशी) राहु के ऋण से बंध गया, अर्थात् चन्द्र-रूपी पद्मावती मेरे प्रेम-रूपी राहु से बंध गई, अब यह प्रेम अवसर पाने पर अवश्य पद्मावती शशी को पकडेगा ॥ कवि के मत से प्राशी स्त्री-लिङ्ग है, इस लिये भद् का प्रयोग किया है (५१ वाँ दोहा देखो।) पुराणों में कथा है, कि देवासुर संग्राम में जब भगवान् ने मोहिनौ स्वरूप को धारण किया, तब देव असुर दोनों ने रूप से मोहित हो, यह कह कर संग्राम समाप्त किया, कि अमृत-का घट इस सुन्दरी को सौंपो, यह हम लोगों में अमृत को बाँट देगी। इस बात को जब सब ने स्वीकार किया, तब मोहिनी ने एक पति में देव दूसरी में राक्षसों को बैठा कर देवों में अमृत और राक्षसों में सुरा को बाँट दिया । उस समय छल से राहु देव-पङ्क्ति में सूर्य और चन्द्र के बीच जा बैठा । ज्यो-हौँ अमृत-पान किया त्यो-हौं सूर्य और चन्द्र ने विष्णु से कहा, कि यह दैत्य है, छल से यहाँ बैठ गया है। दूस पर मोहिनौ-रूप विष्णु ने क्रुद्ध हो सुदर्शन चक्र से इस के शिर को काट डाला,
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