६५] सुधाकर-चन्द्रिका। १५१ कन्या। ससि-मुख अंग मलय-गिरि रानी । कनक सुगंध दुअआदस बानी ॥ हहिँ पदुमिनि जो सिंघल माँहा। सुगंध सुरूप सो तेहि कइ छाँहा ॥ हौरा-मनि हउँ तेहि क परेवा। काँठा फूट करत तेहि सेवा ॥ अउ पाउँ मानुस कइ भाखा। नाहि त पंखि मूठि भर पाँखा ॥ दोहा । जउ लहि जिअउ राति दिन सवरि मरउँ ओहि नाउँ । मुख राता तन हरिअर दुहूँ जगत पइ जाउँ ॥ ६५ ॥ सत्त = सत्य । जिउ जीव । अ-सत = अ-सत्य । निमरा नि:सरण किया, निकला। पत = पत्तन में देश में। हते = थे। पदुमावति = पद्मावती। बारौ = बालिका पदुम= पद्म = कमल । गंध = गन्ध = सुगन्ध = महक। ममि शशि = चन्द्रमा। बिधि = विधि = ब्रह्मा। अउतारी= अवतार दिया। मलय-गिरि = मलयाचल = मलय- पहाड जहाँ पर मलय चन्दन होता है। दुअआदम = द्वादश । बानौ = वर्ण । पदुमिनि = पद्मिनौ। छाँहा = छाया = प्रतिविम्ब । परेवा = पारावत = पक्षी। काँठा = कण्ठा। मानुस = मनुष्य । पंखि = पक्षौ। पाँखा = पक्ष । जउ लहि = जब तक । राति =रात्रि । सवरि स्मरण कर के। राता रक्त = ललित । हरिअर = हरित वर्ण = हरा । दुहूँ दोनों। पद = अपि = निश्चय = अवश्य ॥ ( शुक ने कहा, कि), हे राजा, सत्य कहते (चाहे) जौ ( चला) जाय, परन्तु (पद) (मैं) कभी अ-सत्य नहीं कहता ॥ सत्य-ही को ले कर (मैं) इस देश में ( पत) निकला हूँ, अर्थात् निकल कर आया हूँ, (नहीं तो) सिंहल-दीप में राजा के घर में (हम) थे ॥ (मेरा वृत्तान्त सुनिये), (सिंहल-दीप ) राजा को पद्मावती कन्या है। (उस को ऐसौ शोभा है, जानौँ) ब्रह्मा ने कमल के सुगन्ध महित शशि (चन्द्र) का अवतार दिया है। उस रानी का मुख तो चन्द्रमा (शशि) और अङ्ग मलयाचल है, (उस का वर्ण ऐसा है, जानों) सुगन्ध सहित द्वादश वर्ण अर्थात् द्वादशादित्य के ऐसा प्रज्वलित वर्ण (उत्तम सुवर्ण) सुवर्ण (कनक) हो ॥ सिंहल में और जो पद्मिनी (स्त्रियाँ ) हैं, सो ( मब) सुगन्ध और सुरूप में तिस ( पद्मावती) को छाया (प्रतिविम्व) हैं ॥ तिम पद्मावती का (मैं ) हीरा-मणि पचौ हूँ। तिसौ की सेवा करते ( मेरा) कण्ठा फूटा अर्थात् जवान हुआ ॥ ( सुग्ग जब जवान होते हैं 1
पृष्ठ:पदुमावति.djvu/२३१
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।