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१३२ पदुमावति । ७ । बनिजारा-खंड । [८३-८४ वह अवश्य (पदू = अपि) अपना गुण कहने चाहता है ॥ (क्योंकि) जब तक गुण नहीं प्रगट होता, तब तक कोई (किमी का) मर्म नहीं जानता ॥ ( सो) मैं चारो वेद का पण्डित हूँ, होरा-मणि मेरा नाम है। मैं पद्मावती से रमण (क्रीडा) करता हूँ, और तिमी स्थान में ( पद्मावती को) सेवा करता हूँ॥ ८३ ॥ चउपाई। रतन-सेन होरा-मनि चीन्हा । लाख टका बाम्हन कह दीन्हा ॥ बिपर असिस देइ कीन्ह पयाना। सुआ सा राज-मँदिर मँह आना ॥ बरनउँ कहा सुश्रा कइ भाखा। धनि सो नाउँ होरा-मनि राखा ॥ जो बोलइ राजा मुख जोा। जनउँ मोति हिअ हार परोत्रा ॥ जउँ बोलइ सब मानिक मूंगा। नाहिँ त मवन बाँधि रह गूंगा ॥ मनहुँ मारि मुख अंबित मेला। गुरु होइ आपु कीन्ह जग चेला ॥ सुरुज चाँद कइ कथा जो कहा। पेम क कहनि लाइ चित गहा ॥ दोहा। जो जो सुनइ धुनइ सिर राजा पिरिति अगाहि । अस गुनवंत नहीं भल (सुअटा) बाउर करिहइ काहि ॥८४ ॥ इति बनिजारा-खंड ॥ ७॥ कैसे। भाखा - भाषा - टका टङ्क = पाँच तोले का छठवां भाग पुराना रुपया। पयान = प्रयाण = याचा। ाना =ानौत हुत्रा = लिाया गया। कहा = कथम् = क्या = बोलौ। धनि = धन्य । नाउँ= नाम । जोत्रा = जोहा- जोह कर = रुख देख कर। परोत्रा = प्रोत किया है= पहिराया है। मउन = मौन = चुप। बाँधि = बाँध कर । मारि-मार कर। अंबित = अमृत । सुरुज = सूर्य । चाँद = चन्द्र। पेम=प्रेम। कहनि = कथन = कहानी। गहा = पकड लिया। पिरिति = प्रौति=प्रेम। अगाहि= अगाध = अपार । गुनवंत = गुणवान् = गुणवन्तः । बाउर = वातुल = बौरहा = पगला। करिहर करेगा। काहि = किसी को ।