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Co- - ८१] सुधाकर-चन्द्रिका। १२० पक्षी को बध करता है" यह अर्थ करना)। तुझे हत्या (पाप) का डर नहीं पाता । कहता है, कि पक्षी मनुष्य (मानव ) का भोजन है, (मो मैं तो तिसे मनुय्य नहौं, किन्तु ) निठुर (कठोर = क्रूर ) ( समझता हूँ), जो कि पराये (दूसरे) की मांस खाता है ॥ (रे व्याध, निश्चय समझ, कि हूँ) रो कर पाता है (जन्म लेता है), और रो-हो कर के जाता है (मरता है), तब भौ भोग और सुख से सोना यह नहौँ तजता ॥ और जानता है, कि शरीर (तन = तनु) नाश होगी, तब भी पराये की मांस से (अपनी) मांस को पोसता है (पालता है)॥ (ब्राह्मण कहता है, कि सत्य है,) यदि ऐसा (अस) पर-मांस-भोजन न होता, तो व्याधा क्याँ पक्षियों को धरता (पकडता) ॥ रे (मन), जो व्याधा नित्य (निति) पक्षियों को धरता है ( पकडता है), वह (मो) बैंचते मन में लोभ नहीं करता, अर्थात् उस के मन में दया नहीं पाती, कि ऐसे मनोहर पक्षी को क्याँ बैंचता हूँ, सम्भव है, कि खरीदने-वाला दूसे मार कर खा जाय ॥ (अन्त में) ब्राह्मण ने (शक को) मति (बुद्धि) से वेद के ग्रन्थों को अर्थात् वेद- पाठ को सुन कर शुक को खरीदा। और श्रा कर माथियों को मिला, और चित्तौर गढ के पन्य (राह) में हुआ, अर्थात् चित्तौर गढ की राह पकडौ ॥ ८० ॥ चउपाई। तब लगि चितर-सेन सिउ साजा। रतन-सेन चितउर भा राजा ॥ आइ बात तेहि आगे चलो। राजा बनिज आप सिंघली ॥ हहिँ गज-माँति भरी सब सौपी। अउरु बसतु बहु सिंघल-दौपी ॥ बाम्हन एक सुत्रा लेइ आवा। कंचन बरन अनूप सोहावा ॥ राते साव कंठ काँठा। राते डहन लिखा सब पाठा ॥ अउ दुइ नयन सोहावन राता। राते ठोर अमौं-रस बाता ॥ मसतक टीका काँध जनेऊ। कबि बिआस पंडित सहदेऊ ॥ दोहा। बोलि अरथ साँ बोलई सुनत सौस पइ डोल । राज-मँदिर मँह चाहिअ अस वह सुआ अमोल ॥ ८१ ॥