७५] सुधाकर-चन्द्रिका। - सूर्य । अँजोरी = उज्ज्वल । बिश्रोगौ = वियोगी। ओहि लागि = उस के लिये। भोज- धारा नगरौ का राजा जिसे संस्कृत में बडी रुचि थी। बिकरम विक्रम = उज्जयिनी का राजा जिस ने संवत् चलाया है। साका = शक । परखि = परीक्ष्य = परीक्षा कर के। पारखी= परीक्षक = परीक्षा करने-वाला। लखन = लक्षण || चित्तौर गढ का राजा चित्र-सेन है, जिस ने गढ और कोट को बना कर (कद् = कर के) चित्र के ऐसा मज दिया ॥ तिस कुल में उज्वल रत्न-सेन (उत्पन्न हुश्रा), धन्य उस को माता (जननी) है (जिस के कोख में ) ऐसा बालक जन्म लिया । (जन्म के समय) पण्डित लोग गुनि कर (शोच कर) सामुद्रिक को देखते हैं, और (रत्न-सेन के ) रूप को देख कर लगन (लग्न) को विशेषते हैं, अर्थात् लग्न को ठीक करते हैं ॥ (ज्यौतिषौ लोग लग्न से लडकों के रूप बताते हैं, यदि लडके का रूप मिल गया तो समझते हैं, कि लग्न ठीक है) ॥ विचार कर के ज्योतिषी कहते हैं, कि) रत्न-सेन का बहु नग अवतार हुश्रा, अर्थात् अनेक रत्नों में जो जो गुण होते हैं, सो सब गुण से भूषित रत्न-सेन ने अवतार लिया। (दूस के शरीर को) ज्योति ( कान्ति) रत्न है, (और) माथे में मणि (भाग्य-मणि) बरती है॥ रत्न-रूपौ जो पदार्थ ( पद्मावती) है, सो इस को जोडी लिखी है, अर्थात् दस के कर्म में लिखा है, कि पद्मावती से विवाह हो। (दोनों मिल कर ऐसी उज्ज्वल जोडी शोभित होगी) जैसे चाँद और सूर्य को उज्ज्वलित जोडौ ॥ जैसे मालती के लिये भ्रमर वियोगी (विरक्त) होता है, अर्थात् सब सुगन्ध को छोड उसी में रक्त हो जाता है, तैसे-हौ उस के ( पद्मावती) लिये यह योगी होगा ॥ सिंहल-द्वीप में जा कर उस को ( पद्मावती को) पावेगा, और (वहाँ पर) सिद्ध हो कर ( पद्मावती को) ले कर चित्तौर गढ श्रावेगा । जैसे राजा भोज ने भोग को माना है, अर्थात् सुख-भोग किया है, और राजा विक्रम ने जैसा शाका (संवत् ) किया है, (वैसा-ही यह भी सब करेगा)। इस प्रकार से पारखी (ज्यौतिषौ)-लोग रतन (रत्न-सेन ) को परीक्षा कर सब लक्षणे को लिख दिया ॥ ७५ ॥ इति राज-रत्न-सेन-जन्म-खण्डं नाम षष्ठ-खण्डं समाप्तम् ॥ ६ ॥
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