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१०८ पदुमावति । ५ । सुया-खंड । [६८ करने-वाला। जावत = यावन्तः = जितने। भख भक्ष्य । दाता = देने-वाला। पाहन = पत्थल। सर्वर = स्मरण करे। चारा = चर्वण =भोजन। सोग = शोक। बिछोह = वियोग । श्रुक तिम सरोवर में (तहाँ) दुलारी पद्मावती (तो) खेलती है, और ( यहाँ ) मन्दिर में बिलैया को देखा ॥ (जौ में ) कहने लगा, कि जब तक शरीर (तन =तनु ) में पक्ष (डैने ) हैं, तब तक ( यहाँ से ) चल (चल दूं, तो अच्छा)। (ऐसा शोच कर) वन- वृक्षों को देख कर, अर्थात् वन-वृक्षों की ओर दृष्टि कर, जीव ले कर उडा ॥ जीव को लिये वन-विभाग में जा कर पडा। (वहाँ पर ) पचौ सब (उस से ) मिले, और (उस का) बहुत आदर किये ॥ (पलुआ पक्षो को बनैले पक्षौ देख कर मारने लगते हैं, परन्तु यहाँ पक्षियों का मिलना, और आदर करना, यह होरा-मणि के गुण का प्रभाव है, इस लिये दूस वाक्य से कवि ने होरा-मणि को आन्तरिक प्रशंसा किया है)। सब पक्षियों ने (जिस शाखा पर होरा-मणि बैठा था, उस ) शाखा के आगे (अग्र-भाग में ) (भोजन को) श्रान कर धरे, कवि कहता है, कि (ईश्वर की ओर से ) जब तक (भोजन) रकला है, तब तक भुक्ति (भोजन) नहीं मिटतो, अर्थात् प्राणौ चाहे जहाँ जाय, परन्तु ईश्वर की ओर से उस के लिये जो पहले-हौ से भोजन रकखा है, वह अवश्य उसे मिलता है, ऐसा नहीं कि वह भूखों मरे ॥ (शक ने) भोजन को पाया, और उस के मन में सुख हुआ। जो कुछ (मार्ग का) दुःख था, सो सब भूल (बिसरि ) गया । कवि कहता है कि, हे (श्रद् अयि) गोसाई, दूं ऐसा विधाता (पोषण करने-वाला) है। जितने जीव हैं सब को (ह्) भक्ष्य (भक्षण ) देने वाला है | पत्थल में भी तै ने कौट (पतङ्ग) को नहीं भुलाया है, अर्थात् पहाडों में पत्थल के नीचे जो पडे हुये कौट हैं, उन को भी खबर यूँ लेता है, ऐसा नहीं कि भूल जा। जहाँ तुझे स्मरण करे, तहाँ-ही दूँ चारा (भोजन) देता है। वियोग (विकुडने) का तब तक शोक रहता है, जब तक कि पेट में भोजन नहीं पड़ा। (भोजन पड़ने पर) फिर वह वियोग भूल जाता है, स्मरण-मात्र हो जाता है, और (वह जो दिन रात को भेंट) सो ऐसौ जान पड़ती है, जानौँ सपने में भेंट हुई थौ ॥ कवि का तात्पर्य है, कि पद्मावती से विकुडने का जो शोक, उसे भोजन करने पर होरा-मणि ने भुला दिया, और जो दिन रात को भेंट, सो सपने की भेंट सौ हो गई ॥ ६८॥