=] सुधाकर-चन्द्रिका। १०७ अथ सुआ-खंड ॥ ५॥ चउपाई। पदुमावति तह खेल दुलारौ। सुश्रा मंदिर मँह देख मँजारौ ॥ कहेसि चलउँ जउ लहि तन पाँखा। जिउ लेइ उडा ताकि बन-ढाँखा ॥ जाइ परा बन-खंड जिउ लौन्हे। मिले पंखि बहु आदर कीन्हे ॥ आनि धरे आगइ सब साखा। भुगुति न मेटइ जउ लहि राखा ॥ पाई भुगुति सुक्ख मन भण्ज। अहा जो दुक्ख बिसरि सब गण्ज अइ गोसाइँ तूं अइस बिधाता। जावत जिउ सब कर भख-दाता ॥ पाहन मह न पतंग बिसारा। जहँ तोहि सवर देहि तूं चारा ॥ दोहा। तउ लहि सोग बिछोह कर भोजन परा न पेट । पुनि बिसरा भा सवरना जनु सपने भइ भेंट ॥ ६८ ॥ दुलारी दुलरुई = अपने माँ बाप को बडो प्यारौ। पाँखा पक्ष । ताकि =देख कर । बन-ढाँखा बन के ढाँकने-वाले = वन-वृक्ष । बन-खंड = वन-खण्ड वन-विभाग। मुक्त सुख । दुक्ल = दुःख । विसरि= विस्मति = भूल । गोसाइँ = गोसाई = गोखामी = ईश्वर । अदूम = ऐमा। बिधाता= विधान करने-वाला =पोषण करने-वाला = पालन =
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