१८ पदुभावति । ४ । मानसरोदक-खंड । [६२-६३ लोगों से ) पूँछेगा, और (व्यर्थ ) दोष लगावेगा (कि तुमने यह अनुचित कर्म किया)। ( उस घडी) कौन उत्तर से कैसे मोक्ष पावेगी, अर्थात् उस दोष से निर्मुक्त हाँगी ।। कितनी वार मासु और ननद (ननन्दा = पति को बहिन) (क्रोध से) भाँह सिकोडेगो, (उस समय सोच से (दब कर) (उन के आगे ) दोनों हाथ जोडे रहेंगी। (फिर ) कहाँ यह खेल कूद करने आवेगौ, मसुरे में जन्म से अन्त तक, अर्थात् मरण पर्यन्त दुःख भरना पडेगा ॥ फिर कहाँ नैहर में आवेगो, और ससुरे में फिर कहाँ यह खेल (सब किसी को)। आप आप को होगी, अर्थात् श्राप श्राप को पडेगौ, हम लोग (मन्दिर के भीतर ऐसौ ) पड़ेंगी, जैसे डेली में पक्षी (जहाँ से निकलना कठिन होगा) ॥ ६२ ॥ चउपाई। सरवर तौर पदुमिनी आई। खोया छोरि केस मुख लाई ॥ ससि मुख अंग मलय-गिरि रानी। नागिनि झाँपि लौन्ह अरघानी ॥ ओनए मेघ परी जग छाँहा। ससि कइ सरन लौन्ह जनु राँहा ॥ छपि गइ दिन-हिँ भानु कइ दसा । लेइ निसि नखत चाँद परगसा ॥ भूलि चकोर दिसिटि तहँ लावा। मेघ घटा मँह चंद देखावा ॥ दसन दाविनी कोकिल भाखौ। भउँहइँ धनुख गगन लेइ राखौ ॥ नयन खंजन दुइ केलि करेहौँ। कुच नारंग मधुकर रस लेहौँ ॥ - दोहा। खोपा = जूरा। सरवर रूप बिमोहा हिअइ हिलोर करेइ । पाउँ छुअइ मकु पावऊँ प्रहि मिस लहरइ देइ ॥ ६३ ॥ सरबर = सरोवर। केस =केश। अरघानौ = आघ्राण = सुगन्ध। ओनए = अँके । राँहा = राह। दमा दशा = तेज। नखत = नक्षत्र । परगमा किया। दशन = दाँत। दाविनी = दामिनी = बिजली। भाखौ भउँहहूँ = भ्र= भौहैं। खंजन खञ्जन । नारंग = नारङ्गी। मधुकर भ्रमर । हिलोर = हलोरा= तरङ्ग । पाउँ= पैर । मकु = मैं ने कहा = मैं कहता हूँ=जानौँ। मिस = प्रकाश ७ दसन = =भाषा । मिष = व्याज बहाना॥
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