पदुमावति । 8 । मानसरोदक-खंड । अथ मानसरोदक-खंड।४। चउपाई। एक दिवस पूनिउँ तिथि आई। मानसरोदक चलौ अन्हाई ॥ पदुमावति सब सखौ बोलाई। जनु फुलवारि सबइ चलि आई ॥ कोई चंपा कोइ कुंद सहेलो। कोइ सो केत करना रस-बेली ॥ कोइ सो गुलाल सुदरसन राते। कोइ बकउरि बकुचन बिहँसाते ॥ कोइ सो मउलसिरि पुहुपावती। कोइ जाही जूही सेवती ॥ कोई सोनिजरद कोइ केसर। कोइ सिंगार-हार, नागेसर । कोइ कूजा सतिबरग चबेइली। कोई कदम सुरस रस-बेइली ॥ दोहा। चलौ सबइ मालति सँग फूलो कवल कुमोद। बेधि रहे गन गंधरब बास परिमलामोद ॥ ६ ॥ पूनिउँ= पूर्णिमा। मानसरोदक = मानसर-उदक, उदक = पानी। जिस का पानी मानसरोवर, जो कि मेरु पर है, उस के ऐमा हो । चंपा। कुंद। केत = केतको। करना = एक प्रकार के नौवू का पुष्य। रस-बेलौ = रस को लता, गुलाल = गुलालौं रंग का गुलाब । सुदरसन = सुदर्शन । राते = लाल। बकउरि = बकावली। बकुचन = ढेर =
पृष्ठ:पदुमावति.djvu/१७४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।