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५६ - ५७] सुधाकर चन्द्रिका। ८९ कोई दूसरा मनुष्य रहता हो न था तहाँ दुर्जन का पहुँचना और इन के बात चौत का सुनना यह भी असम्भव प्राय है, इन सब बातों से जान पड़ता है कि यह चौपाई क्षेपक है। बहुत पुस्तकों में यह पाई भी नहीं जाती ॥ ५६ ॥ चउपाई। राजइ सुना दिसिटि भइ आना। बुधि जो देइ सँग सुआ सयाना ॥ भएउ रजासु मारहु सूआ। सूर सुनाउ चाँद जहँ जा.॥ सतुर सुश्रा के नाऊ बारौ। सुनि धाए जस धाउ मँजारी॥ तब लगि रानी सुत्रा छपावा। जब लगि आउ मजारि न पावा ॥ पिता कि आसु माँथइ मोरे। कहहु जाइ विनवड कर जोरे॥ पंखि न कोई होइ सुजानू। जानइ भुगुति कि जानु उडानू ॥ सुआ जो पढइ पढाए बयना। तेहि कित बुधि जेहि हिअइ न नयना ॥ दोहा। भाना = - मानिक मोती देखि वह · हि न गिान करेइ । दारिउँ दाख जानि कइ तब-हिँ ठोर भरि लेइ ॥ ५७ ॥ अन्य । बुधि = बुद्धि । रजाप्रसु = राजाज्ञा। सूर सूर्य । सुनाउ = सुनावता है। ऊषा = उदय हुश्रा। सतुर = शत्रु । नाऊ = नापित = नाई । बारौ=जो उच्छिष्ट पत्तल उठाता है। मशाल ले कर उँजेला करने वाला। धाए = दौडे। मजारौ -मार्जारौ = बिलैया । श्राएसुः = प्राज्ञा। बिनवंदू = विनती करती है। कर = हाथ। जोरे मिलाये। पंखो - पचौ। सुजान सुज्ञ =जान-कार। भुगति = भुक्ति = भोजन । उडानू बयन = वचन । गिश्रान ज्ञान । दारिउँ= दाडिम = अनार । दाख =द्राचा = अङ्गर वा मुनक्का । ठोर= चाँच ॥ राजा (गन्धर्व-सेन ) ने सुना कि ( पद्मावती के ) सङ्ग में जो चतुर तोता (सुत्रा) है, वह (पद्मावती को) बुद्धि देता है, अर्थात् सिखाता है, इस लिये ( पद्मावती की) दृष्टि दूसरौ हो गई, अर्थात् अब उसे पुरुष की इच्छा हुई है ॥ (इस लिये) राजाज्ञा हुई (भई) कि तोते को मारो, (क्योंकि) जहाँ चन्द्र का उदय हुआ है, वहाँ सूर्य को = उड्डयन उडना । 12