५२-५३] सुधाकर-चन्द्रिका । पण्डित लोग कहते हैं कि, यह कन्या सिंहल-द्वीप में वैमो-ही उत्पन्न हुई है जैसे वत्तीमो लक्षण के साथ अयोध्या में राम। जैसे रूप (राम के रूप) को देख कर रावण लुभा गया उमौ प्रकार इस पद्मावति के रूप को देख कर सब भूल गये, जैसे दीपक को देख कर पतङ्ग ॥ ५२ ॥ ३२. मो लक्षण के लिये ४६ ३ दोहे की टौका देखो। चउपाई। अही जनम-पतरौ. सो लिखी। देइ असौस बहुरे जोतिखौ ॥ पाँच बरिस महँ भई सो बारी। दोन्ह पुरान पढइ बइसारी॥ भइ पदमावति पंडित गुनौ। चहू खंड के राजन्छ सुनो। सिंघल-दीप राज घर बारी। महा सुरूप दई अउतारी॥ एक पदुमिनि अउ पंडित पढी। दहुँ केइ जोग दई असि गढी ॥ जा कह लिखौ लच्छि घर होनौ। सो असि पाउ पढी अउ लोनी ॥ सपत दीप के बरइ ओनाहौँ। उतर न पावहिँ फिरि फिरि जाहौँ । दोहा। राजा कहइ गरब सउँ हउँ र इँदर सिउ-लोक । को सरि मो सउँ पावई का सउँ करउँ बरोक ॥ ५३ ॥ अहो = श्रामौत् = थी। जनम-पतरी = जन्मपत्री। बहुरे = फिरे = लौटे। जोतिखौ = ज्यौतिषी = गणक। बरिस = वर्ष । बारी= वालिका = कन्या। बदूमारी = वैठाया। दऊँ = क्या जाने = देखें । लच्छि = लक्ष्मी । लोनी = लावण्यता से भरी= सुन्दरौ। बरदु = वर लोग = विवाह करने-वाले। उतर = उत्तर । बरोक = बरेखौ = बरच्छा = वरपरीक्षा जिस से विवाह करना होता है, उसे कुछ दे कर, और विवाह का नियम कर, उसे वचन-बन्ध करते हैं; फिर विवाह चाहे जब हो, परन्तु वह दूसरी जगह विवाह नहौं कर सकता। यह रोति विवाह में सब से पहले भारतवर्ष में क्या नौच क्या उच्च कुल सर्वत्र होती है। देश विशेष से इस रौति के बरेखौ, वरच्छा, सगाई, छैका इत्यादि ये अनेक नाम हैं।
पृष्ठ:पदुमावति.djvu/१६३
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।