€ 5 पदुमावति । २ । सिंघलदीप-बरनन-खंड । [88 दोहा। मंदिर मंदिर फुलवारौ चोथा चंदन बास । निसि दिन रहइ बसंत तहँ छवो रितु बरहो मास ॥ ४४ ॥ = पारस । - झारि = बराय कर = झाड कर = केवल = खालौ । असु-पती = अश्व-पति । धउर- हर = धरहरा = ध्रुवहर =ध्रुव के ऐसा ऊँचा स्थान । परस-पखान = स्पर्श-पाषाण बिरास = विलास । चउपारी= चतुः-पाट = चतुः-शाला = बैठक। सारी = पासा। खरग खड्ग । सिंघल = सिंघल का ॥ बरहो = बारहो ॥ गढ के ऊपर झार कर के, अर्थात् केवल, गढ-पति, अश्व-पति, गज-पति, भू-पति और नर-पति लोग बसते हैं। औरों को अधिकार नहीं कि गढ के ऊपर बसे ॥ जिन के अधिकार में एकाध गढी हो, वे गढ-पति कहलाते हैं। जिन के अधिकार में कुछ घोडे और हाथी हाँ, वे क्रम से अश्व-पति और गज-पति कहे जाते हैं। जिन के अधिकार में कुछ भूमि और कुछ मनुष्य अर्थात् सिपाही हाँ, उन्हें क्रम से भू-पति और नर-पति कहते हैं। सब लोगों के धरहरे (उच्च-स्थान ) सोने से सजे हैं, और वे सब अपने अपने घर में राजा-ही के ऐसे हैं, अर्थात् राजा जिस प्रकार का सुख भोगता है, वैसा-हो ये लोग भी भोगते हैं ॥ सब लोग सर्वदा भोग और विलास-ही को मानते हैं, अर्थात् भोग विलास-ही में समय को व्यतीत करते हैं, कोई जन्म भर में भी और चिन्ता को नहीं जानते, कि क्या पदार्थ हैं ॥ इन्द्रियों को सुख-साधन सामग्री को भोग कहते हैं, और बाहर की शोभा को विलास कहते हैं । सब के मन्दिर मन्दिर में बैठक (चउपारी) हैं, वहाँ (गढ-पति , अश्व-पति इत्यादि के ) कुर (बालक) सब बैठ कर पासा (मारी) खेलते हैं ॥ पामा ढारा (फैका) जाता है, और अच्छी तरह से खेल होती है। यह न कोई समझे, कि वे कुर केवल खेल-ही में दिन बिताते हैं, इस लिये अगली चौपाई में वर्णन करते हैं, कि खड्ग (चलाने) और दान ( देने ) में उन कुअरों को बराबरी में कोई नहीं पहुँचता (पूजा), अर्थात् वे कुर खड्ग चलाने में और दान देने में बडे बहादुर हैं ॥ भाँट लोग उन कुअरों को वर्णमा कर, और अच्छी तरह से ( कविता कर), उन की कीर्ति कह कर, घोडे और सिंघल के हाथो पाते हैं। अर्थात् कुअर लोग ऐसे उदार हैं, कि एक एक प्रशंसा में घोडे और हाथिओं से भाँटों को अयाच्य कर देते हैं ।
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