पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/९५

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सुनीलदत्त बहाव गT •हार म प्रा हमारा 7 क्या रेखा वफादार औरत नहीं है नकिन म यह कमी वादियान बात मोच रहा हूँ | मुझे जल्दी मे कोट निणय नही दना नहि। 71 वातो पर अच्छी तरह मोच-ममम नेना चाहिए। ग्रागिर 17 म मन मे क्यो घर करता जा रहा है ज़मीन-पासमान का अन्तर हो गया है। पर दम दम रयानाधिश का भी तो हो सकते है। प्राविर वह अब एक बच्च नी मामा ? व्याह हुए अब नौ मान बीत रह है । अब म म प प न न्य की भाति व्यवहार की प्राशा कम कर सकता। फिर मनापार अव पति-पुत्र मे भी तो बट गया है। क्या मृन मन म - से ही ईष्या कर लेकिन वह मरे लिए टण्डी औरत है । मरम्पान का जागरण नहीं होता उलट वर सिट जानी है हम उसका प्रालिगन भी अव सजीव नहीं रहा उनम बन 'हा' है। जैन वहाव पत्थर का निजीवन है लह नही पानी वह कभी-जन गगना मे गर्मी नहीं मानी। परत यह एक राग नानानाना यह एक रोग है। बहत स्त्रिया का परग' हाना है है। म इन तम्वन्ध न वहत ग्रीनविच - नन' न्ट पुरप न म्। मन मना साना पर बनाना 1-4 र निस्सन्दह नर-नारी बनना =

नमाज