पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/९०

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लीलावती आज अकस्मात् ही मिसेज़ दत्त मेरे यहा पाई। इससे पहले मेने एक बार उन्हे देखा था, जव ममी के साथ मैं उनके घर गई थी। उन्होने मुझे बहुत प्यार किया था -ममी से भी ज्यादा । बहुत हंसी थी वे उस ममय । बडी भली लग रही थी उनकी हँसी । बडी प्यारी है मिमेज़ दत्त । में उन्हे तव मे भूली नहीं है। भूल सकती भी नहीं हू । उसके बाद ग्राज अकस्मात् मेरे यहा पाई। पापा तो आफिस गए थे। नौकर-चाकर सब काम से फारिंग होकर छुट्टी कर गए थे। सिर्फ में अकेली बैठी, किसी मैगजीन के पन्ने पलट रही थी। जब से ममी गई हैं, मेरा मन घर मे नही लगता। उन्होने वर्मा साहब मे शादी कर ली। कितनी शर्म पाई मुझे | पता नही, ममी को शर्म क्यो नहीं आई ? पापा ने बहुत समझाया, मने भी बहुत जिद की, पर ममी ने एक न सुनी। ऐसा ज़िद का भूत उनपर सवार हुप्रा। शादी के बाद वे नहीं आई। कैसे प्राती? अब वे मेरी ममी नहीं रही। मने जब पापा से कहा, “पापा, अब क्या वे मेरी ममी नहीं रही?" तो उन्होंने जैसे एक फीकी हँसी हँसकर कहा, "क्यो नही बेटी, वह तुम्हारी मी है। कहीं भी रहे, इससे क्या सचमुच, मब वाते मेरी ममक में प्राग भी नहीं पा रही हैं । कैमे उनमे यह सब करते वना । कितना प्यार करती थी वे मुझे। मच कहती ह, अव भी करती है। मैं उन्हें जानती है । पर फिर भी वे मुझे छोड गई। मै अकेली रह गई। पापा यकेले रह गए। पर यह उन्होंने कुछ भी तो नहीं सोचा। उनके पिना भाा पापा रह मरते है ? देवो-कैसी हालत हो गई है उनकी। न कपडे का न्यान, 1 ?" मा