पत्थर-गुग के दो पुत म्त्री-पुरुप समान नहीं हैं । सर्वतन्त्र-स्वतन्त्र खुले मसार मे विनरण करने. वाला धन और साहस का अधिष्ठाता, संसार का नेता पुरुप । पोर शरीर तथा हृदय की दुर्वल, जन्म-जन्मातर से दासता और सृष्टि के बन्धनो मे फनी असहाय अबला नारी -भला कैसे पुरुष की बराबरी कर सकती है। म तो देवतीह, नारी कोई प्राणी नहीं है, पुरुप का भोजन है । वह उसे जा भी सकता है वोर भी सकता है। वह पर-स्सी को प्रासानी से नुरा माता है । उनको मामाजिक स्थिति मे कोई प्रन्तर नहीं प्राता। किन्तु सती पर पुरुष को नुराकर कहा रने भता? उसे तो प्रकृति ने ऐसे नाम या है कि नाग का मात छिपा नही सकती। वह जगजाहिर हो जाता । नग, गे, मी पुरुष की समानता का दा नही कर सकती। में IT IT रही ह।। म प्रभी में अपने को क्या की भिखारिन -पकी पाकी भी पोर राय की दया की भी। पत कामगि म प्यार की थी। प्यार क्या मुझे मिता नही ? राब निHI-- 11 नी पोर राय हामी। पर अब, गा वह प्यार ही मुके {. IIT मरा है। पाना हदगा कर मुके बादे, उभ नहीं, होने fH41। 2,7 ci rit
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पत्थर-युग के दो बुत