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पत्थर-युग के दो बुत
 

पत्थर-युग के दो पुन भी है। उनका प्रेम गम्भीर है और वे एक जरूरतमद आदमी है। वे उम उम्र को पहुच चुके है जिसमे मर्द के लिए औरत सिलवाड की नहीं, काम की वस्तु रह जाती है। ज्यो-ज्यो वे मेरे निकट पाते गए है, में उनके पेम की गहराई और मचाई भी परखती गई ह। प्रारम्भ मे म उनसे डरती थी, फिर उनसे मेरे मन मे प्रेमभाव उत्पन्न हुप्रा-पीर प्रब तो दयाभार भी है। वे मेरे लिए सब-कुछ कर गुजरने पर प्रामादा है। फिर भी मेरा मन अव इन म्यान पर प्रा पहुचने के बाद काप रहा है। इसलिए नहीं कि वर्मा मुझने विश्वासघात करेगे। ऐसा करके वे मेरा कुछ भी नहीं विगाड मक्ते है । अपना ही प्राथय खो देगे। में जानती ह-उन्हे मेरी प्रावश्य- रता है, भारी प्रासश्यकता है। उनके जीवन मे मेरी कमी है। वे समझते है कि मेरे द्वारा उनका जीन पुर्ण होगा, प्रौर म जैस राय के प्रति नियरही, उसके पति भी रहगी -जाता कि वे मेर प्रति एकनिष्ठ है। हा पुम तम्पट वृत्ति के होन है, प्रेम कि राय है। उनकी तृप्ति प्रारमही होगी। प्रेम में प्रोर पास म अन्तर नहीं समझा। मा प्रेम पानाम पर नाचगा है। पर पामा शारीरिक उग। पौर प्रेम मानगिर । पामना-पुनि के पाद ग्लानि उत्पन्न होती है, पर रोग तीन मनी पनि होती है न दति, पार न हानि का समय माना है। राय पति की दृसियत म भी पोर पुल की इमिग- म भी प्रगति है। दोना के ही उपयुक्त गुण उनम है, परन्तु । प्रादश नही है। उन पापा यादी पत्नी का निर्वाह हा माना पातमा पाता ।। अति व न हो, पर मुन-ननी योग्ता नहीं जा प्रणा यति । प्रार उसने मुल्य को जानती हैं। पितर मी म बाबरम नो माना। चमा गारद प्रादा पनि प्रमाणित हाना 41PT4141 TITT अपना अच्छा नहीं है परन्तु मन उन मिलान ममी in Aff., न तमन्ना । उनी नी गुग न नु, दारी पार पाnि: it मोर नव पति-पउनमा रग रिन पर पानादा।।