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पत्थर-युग के दो बुत
 

पत्यर-युग के दो बुत ?" बराबर के भागीदार हैं। अब वे यह नहीं देख सकती कि पति तो दूसरी स्त्रियो से सहवास करता रहे, और पत्नी उसके प्रति एकनिष्ठ रहे। यदि पति चाहता है कि उसकी पत्नी उसके लिए एकनिष्ठ रहे, वफादार रहे तो उमे भी उसके प्रति वफादार, एकनिष्ठ रहना होगा, अवश्य रहना होगा। स्त्रिया अव न पुरुपो की सम्पत्ति हैं, न भोग-सामग्री, न दामी, न पनि प्रता। वे उनकी जीवन-साथी हैं, मित्र, और उनके व्यक्तित्व की प्रक हैं।' "वैर, तो अब तुमने क्या करना विचारा है, माया "जो कुछ कि मुझे करना चाहिए था। तुम मर्द हो, तुमने प्यार को गोग बना दिया और विलास-वासना को प्रमुखता दी-इसी मे तुम भ्रमर का भाति नई-नई कली का रसपान करना पसन्द करते हो। मे औरत ह, प्यार को बडी चीज समझती ह । प्यार का मूल्य मुझे ज्ञात है । मने अपना प्यार उस पुरुप को दिया है जो मेरे प्रति एकनिष्ठ है, वफादार है। ऐसी हालत में हम पति-पत्नी की भाति नहीं रह सकते। यदि ऐसा करने का हम लोग रने तो हम अपनी ही नजरो मे गिर जाएगे, अपने-आप ही तुच्छ हो नागे।" "माया, क्या तुम पीछे अपनी पुरानी जिन्दगी मे नही तोट माती? "दसमा उत्तर तो तुम्ही ज्यादा ठीक ठीक दे सकते हो । क्या तुम ऐमा कर मरते हो? अपनी में कहती है कि म नहीं लौट सक्ती। में प्यार से विलवाड नहीं कर सकती--एक बार जिमे दिया, उमे दिया । जब तक वह वफादार है, उसमे प्यार लौटा नहीं सकती।" "और यदि वह वातदार न निकले?" "तो प्यार का वह अधिकारी ही नहीं रहेगा।" "माया, म तममें एक गम्भीर बात कहता चाहता।" "कहो "मर्द औरत मेरा प्यार ही नहीं चाहता। वह चाहता है प्यार नाप उसका यौवन-मौन्दर्य उसमा जवानी से भरपर शरीराम की पालना स्त्री के शारीर में है, पर श्री की वामना पुरए की शक्ति में है। पुष्प वटी

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