दिलीपकुमार राय आखिर यह बात भी होकर रही। माया चली गई। ग्राज नहीं तो कल, यह काम तो होना ही था। छ महीने से मैं इस काम की जाशका कर रहा था। लेकिन यह एक जबर्दस्त घटना रही। मेरी वात छोदिए पर दूमग कोई व्यक्ति इसकी आशा नही कर मकता या। माया कोई नई-नवेली नही है । उसकी उम्र चालीस को पार कर रही थी। वाईम बरस वह मेरे साथ रही। एक जवा मर्द औरत की तरह उसने मेरे साथ नव भने-चुरे दिन देखे। सबमे उसने हिम्मत और दृढता से मेरा साथ दिया। मैं उने वेवफा कहने की जुरंत नही कर सकता। इस एक घटना के अतिरिक जिसका सम्बन्ध वर्मा से है, वह अन्तत मेरे प्रति वफादार बनी रही। एक वार भी मैंने उसकी दृष्टि मे अन्तर नही देखा। कभी भी मैंने ने वाधकर नहीं रखा । वधकर रहनेवाली औरत वह है नी नहीं । म भारत को भैस-गाय नही समझना है कि गले मे जजीर वाधकर रन् । फिर माया तो एक सुशिक्षित और समझदार औरत है । वह अपना भला-बुरा, दरात- यावरू सब समझती है । वह वडी गैरतमन्द भी है, तेजन्बिनी नी है। अपनी शान और मर्यादा का उसे प्रा स्याल है । वह जब तक रही अपनी निप्ता के साथ, और अव गई तो भी अपनी निष्ठा के नाथ । उनी ग्रावो में झिझक न तव थी, न अव । वेवी अव बच्ची नही रही । उन्लीन वरन की हो चली। नर जाताना समझती है। फिर भी अभी उन्न तो उतनी सच्ची ही है। जिन्दरी रे उन गम्भीर और पेचीले मामलो को वह ने नमन नानी है बाहने । ,
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